Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 22
________________ २०६ जैनहितैषी [भाग १४ कलकत्ता जैनसभाकी आज्ञा! इस प्रस्तावमें जिन दो पत्रोंको अजैनपत्र करार दिया गया है उन्हें हम बराबर पढ़ते आये हैं । ये दोनों पत्र जैनसमाजसे सम्बंध संपादकीय विचार। रखते हैं, जैनियोंके हिताहितकी चिन्ता करते हैं, हालमें दिगम्बरजैनसभा कलकत्ताने, ब्रह्म- जैनसमाज ही इनका ध्येय तथा आराध्य है, चारी शीतलप्रसादजीके सभापतित्वमें, एक और दूसरे समाजोंसे इनका प्रायः कोई सम्बंध प्रस्ताव पास किया है और उसके द्वारा संपूर्ण विशेष नहीं है । ऐसी हालतमें इन्हें जैनपत्र न जैनियोंके नाम यह आज्ञा जारी की है कि वे मानकर अजैन कहना, यह बात हमें अभी सुन'सत्योदय ' और 'जातिप्रबोधक' नामके दो नेको मिली है । समझमें नहीं आता कलकत्ता पत्रोंको ‘जैनपत्र ' न समझें, न वैसा समझकर जैनसभाने जैनपत्रका क्या लक्षण तजवीज किया खरीदें और न उन्हें पढ़ें । सभाकी तरफत है-किसको जैनपत्र माना है । ' जैन' शब्दके प्रस्तावकी एक नकल, हितैषीमें प्रकाशित होनेके साथ न होनेसे किसी पत्रका अजैन होना तो लिये; हमारे पास भी आई है । उसे पढ़कर सभाको इष्ट नहीं हो सकता; क्योंकि ऐसी हालहमारे हृदयमें जिन जिन विचारोंका उदय हुआ तमें सत्यवादी, पद्मावतीपुरवाल आदि और है उनके साथ हम उक्त प्रस्तावको नीचे प्रका- भी दूसरे अनेक ऐसे पत्रोंको अजैन कहना होगा, शित करते हैं । वह प्रस्ताव इस प्रकार है:- जिनके साथ 'जैन शब्द' लगा हुआ नहीं है। ___ "कलकत्ता दिगम्बरजैनसभा प्रस्ताव करती इसी तरह सभाकी दृष्टि में यह भी इष्ट नहीं हो है कि सत्योदय इटावा व जातिप्रबोधक झांसी सकता कि जो पत्र जैनव्यक्तियों द्वारा संपादित पत्रोंके लेखोंसे पर ('यह' या 'प्र' १) होते हैं वे ही जैनपत्र हैं; क्योंकि अजैन व्यक्तियोंस्पष्ट झलकता है कि उसके लेख जैनधर्मके , द्वारा भी जैनपत्र संपा विरुद्ध तथा जैनधर्मके गौरवको अयोग्य - इसके सिवाय जिन दो पत्रोंको उसने अजैन करार वाग्जालद्वारा घटानेका उद्योग करनेवाले निकलते हैं जिससे ये पत्र कभी जैनपत्र नहीं माने दिया है वे दोनों ही जैनव्यक्तियों द्वारा संपादित जा सकते अतएव कोई भी जैनी भाई उनको होते हैं-दोनोंके एडीटर जैन हैं-एकके वर्तमान जैनपत्र समझकर न खरीदें और न पढें इस एडीटर तो खास पं० गोपालदासजीके शिष्योंमेंप्रस्तावकी नकल तमाम जैनपत्रों में तथा पंचाय- से हैं और वे बहुत दिनोंतक उक्त पंडितजीके तीमें भेज दी जाय। सत्संगमें रहे हैं । इन दोनों संपादकोंमेंसे हालमें प० पं0 जयदेवजी किसीने जैनधर्मका परित्याग भी नहीं किया है और न जैनजातिने ही उन्हें अपनेसे पृथक्स० पं० कस्तूरचन्दजी किया है, जिससे जैन न रहनेके कारण उनके पं० बल्देवदासजी पत्रोंको अजैन समझ लिया जाता । तब क्या . अ० पं० भूरामलजी पं० बाबूलालजी वैद्य * दिगम्बरजैनमहासभाका मुखपत्र 'जनगजट' एक बार अजैन व्यक्ति द्वारा संपादित हुआ था और सभापति ब्र० शीतलप्रसादजी धर्माभ्यदय' नामका जैनपत्र एक अजैन व्यक्ति ( प्रस्ताव सर्वसम्मतिसे पास ) २१-४-२०” द्वारा संपादित होता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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