________________
२१६ ... जैनहितैषी
[भाग १४ श्रीहरिषेणकृत कथाकोश। भेद था। यह द्राविडसंघका नामान्तर जान
__पड़ता है। द्रविडदेशीय होनेके कारण इसका • [ लेखक-श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमी।]
ही द्रविडसंघे नाम हुआ है । पुन्नाट भी संभवतः
द्रविड देशका ही नामान्तर है । इस कथाकोशमें दिगम्बर और श्वेताम्बरसम्प्रदायके विद्वानों
. ही भद्रबाहु-कथानकमें लिखा है:द्वारा अनेक कथाकोश रचे गये हैं, परंतु अभी
____अनेन सह संघोऽपि समस्तो गुरुवाक्यतः।। तक जितने कथाकोश उपलब्ध हुए हैं, वे अपे
___दक्षिणापथदेशस्थपुन्नाटविषयं ययौ ॥ ४० ॥ क्षाकृत अर्वाचीन हैं-ग्यारहवीं शताब्दीके पह
इससे सिद्ध है कि पुन्नाट दक्षिणापथका ही लेका अभी तक कोई कथाकोश प्राप्त नहीं
• एक देश है और उसे द्रविडदेश मानना कुछ हुआ है । इस लेखमें हम जिस कथाकोशका
असंगत नहीं हो सकता। उस समय शायद परिचय देना चाहते हैं वह शक संवत् ८५३,
कर्नाटक देश भी द्रविडदेशमें गिना जाना था। विक्रम संवत् ९८९ और खर नामक वर्तमान
इस संघका एक और नाम द्रविडसंघ भी है : संवत्के २४ वें वर्षका बना हुआ है और इस
न्यायविनिश्चयालंकार और पार्श्वनाथचरित लिए इस समय हम उसे सबसे प्राचीन जैन
आदिके कर्ता सुप्रसिद्ध तार्किक वादिराजने अपकथाकोश कह सकते हैं।
नेको द्रविडसंघीय लिखा है । द्रविडदेशको इस कथाकोशकी एक प्रति पूनेके "भाण्डार
। द्रमिलदेश भी कहते हैं। कर-प्राच्यविद्यासंशोधन मन्दिर" में मौजूद है.
सुप्रसिद्ध हरिवंशपुराणके कर्ता प्रथम जिनजो वि० सं० १८६८ की लिखी हुई है । यह
सेन भी इसी पुन्नाट संघके आचार्य थे:जयपुरके गोधाजीके मन्दिर में लिखी गई थी और
___“व्यत्सृष्टापरसंघसन्ततिबृहत्पुन्नाटसंघान्वये-" संभवतः वहींसे गवर्नमेण्टके लिए खरीदी गई है।
. हरिवंश-प्रशस्ति । इसकी श्लोकसंख्या १२५००, पत्रसंख्या ३५० यह कथाकोश भी उसी वर्द्धमाननगरमें और कथासंख्या १५७ है । प्रायः सारा ग्रन्थ बनाया गया है जहाँ कि जिनसेनसूरिने हरिवंशअनुष्टुप् छन्दोमें रचा गया है । रचना बहुत प्रौढ
पुराणकी रचना की थी। और जब कि जिनऔर सुन्दर तो नहीं है; परन्तु दिगम्बर सम्प्र
सेन पुन्नाट संघके ही आचार्य हैं तब संभव है दायके अन्य कथाकोशोंसे अच्छी है।
कि हरिषेण आचार्य जिनसेनकी ही शिष्यपर___ इसके कर्ता हरिषेण नामक आचार्य हैं जो म्परामें हों। यदि मौनिभट्टारककी गरुपरम्पराका अपनी गुरुपरम्परा इस भांति बतलाते हैं-१ पता लग जाय तो इस बातका निर्णय सहज मौनि भट्टारक, २ श्रीहरिषेण, ३ भरतसेन और ही हो जाय। ४ हरिषेण । हरिषेण पुन्नाट संघके आचार्य थे। वर्द्धमानपुर कर्नाटक देशका ही कोई प्रसिद्ध यद्यपि दिगम्बर सम्प्रदायके अनेक आचार्योंने नगर है। मालूम नहीं, इस समय वह किस इस संघको पांच जैनाभासमि' एक बैंतलाया नामसे प्रसिद्ध है। जिनसेनसरि लिखते हैं:है; परन्तु फिर भी यह दिगम्बर सम्प्रदायका ही
___दक्षिणमहुराजादो दाविडसंघो महा१ मेरे द्वारा सम्पादित और जैनग्रन्थरत्नाकर कार्या- मोहो॥२८॥
देवसेन। 'लय, बम्बई द्वारा प्रकाशित 'दर्शनसार' में जैनाभा- २ आपटेकी संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरीमें पुन्नाटका सोंका विस्तृत विवेचन देखिए।
- अर्थ 'कर्नाटक देश' लिखा है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org