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अङ्क ७-८]
श्रीहरिषेणकृत कथाकोश।
"कल्याणैः परिवद्धमानविपुलश्रीवर्द्धमाने पुरे, नुवाद मात्र है। ये दोनों कथाकोश इस कथाश्रीपालियननराजवसतो पर्याप्तशेषःxx" कोशकी अपेक्षा छोटे हैं, इसीलिए जान पड़ता
इसी प्रकार इस कथाकोशके कर्ता लिखते हैं:- है कि इसकी प्रति लिखनेवालेने इसके नामके " जैनालयबातविराजितांते चन्द्रावदातद्युतिसौधजाले। साथ बृहत् विशेषण लगा दिया है । ग्रंथकर्ताने कार्तस्वरापूर्णजनाधिवासे श्रीवर्द्धमानाख्यपुरे xxx॥" स्वयं इसे ' कथाकोश' ही लिखा है।
इससे जान पड़ता है कि उस समय यह हमको इस कथाकोशकी सब कथायें पढ़नगर बहुत समृद्धिशाली था और अनेक जैन- नेका अवसर नहीं मिला। हैं भी वे बहुत मान्दिरोंसे सुशोभित था । वहाँके नन्नराजके मामूली और विशेषत्वहीन । कुछ कथायें ऐतिबनाये हुए पार्श्वनाथालय नामक जैनमन्दिरका- हासिक पुरुषोंसे सम्बन्ध रखनेवाली हैं, जैसे जहाँ कि हरिवंशपुराण समाप्त हुआ था-और चाणक्य, शकटाल, और भद्रबाहु; परन्तु वे भी भी कई ग्रन्थोंमें उल्लेख मिलता है।
वास्तविक इतिहाससे कम सम्बन्ध रखती हैं__ यह ग्रन्थ विनयपाल नामक राजाके सम- केवल जैनधर्मकी महिमा बढ़ानेके उद्देश्यसे यमें लिखा गया है । ग्रन्थप्रशस्तिसे यह मालम लिखी गई हैं। नहीं होता है कि विनयपालकी राजधानी इसमें भद्रबाहुकी जो कथा लिखी गई है कहाँ थी । संभवतः वह वर्धमानपुरमें ही होगी। उसमें दो बातें बड़ी विलक्षण हैं और पुरातत्त्वहम इस बातका पता नहीं लगा सके कि विनय- ज्ञोंके ध्यानमें रहने योग्य हैं। एक तो यह कि, पाल किस वंशका राजा था; परन्तु संभवतः वह भद्रबाहुने १२ वर्षका घोर दुर्भिक्ष पड़नेका राष्ट्रकूट राजाओंका माण्डलिक होगा और चतुर्थ निश्चय करके अपने शिष्योंको ही दक्षिणापथ गोविन्द या सुवर्णवर्षका समकालीन होगा तथा सिन्ध्वादि देशोंको भेज दिया था, पर वे जिसने शक संवत् ८५६ तक राज्य किया था। स्वयं उज्जयिनी में रहे और कुछ दिनोंमें उज्ज___ यह कथाकोश किसी 'आराधना ' नामक यिनीक निकट भाद्रपद-( भेलसा ? ) नामक ग्रन्थसे उद्धत करके सारांश रूपमें या उसके स्थानमें स्वर्गवासी हो मये । दूसरे, उज्जयिनीके सहारसे लिखा गया है, यह बात प्रशस्तिके राजा चन्द्रगुप्तने भद्रबाहुके समीप दीक्षा ले आठवें श्लोकके 'आराधनोद्धतः' पदसे मालम ली थी और वे ही पीछे विशाखाचार्यके नामसे होती है। ऐसी दशामें कहना होगा कि इस देवेन्द्रचन्द्रार्कसमर्चितेन तेन प्रभाचन्द्रमुनीश्वरेण । ग्रन्थकी कथायें अधिक नहीं तो हरिषेणके सम
नहाता हारषणक सम- अनुप्रहार्थ रचितं सुवाक्यैराराधनासारकथाप्रबन्धः॥६॥ यसे सौ दो सौ वर्ष पहलेकी अवश्य होंगी। तेन क्रमणैव मया स्वशक्त्या श्लोकैः प्रसिद्धैश्च निगवते .. दिगम्बर सम्प्रदायमें 'आराधना-कथाकोश' सः । मार्गे न किं भानुकरप्रकाशे स्वलीलया गच्छति नामके दो संस्कृत कथाकोश और भी हैं। इन- सर्वलोकः ॥ ७॥ -नेमिदत्तकृत कथाकोश । मेंसे एक प्रभाचन्द्र भट्टारकका बनाया हुआ २-भद्रबाहुमुनीधारो भयसप्तकवर्जितः। गद्यमें है और दूसरा मल्लिभूषणके शिष्य नेमिदत्त
पंपाक्षुधाश्रमं तीव्र जिगाय सहसोत्थितम् ॥ ४२ ॥ ब्रह्मचारीको पयमें है। यह दूसरा प्रथमका पद्या
प्राप्य भाद्रपदं देशं श्रीमदुज्जयिनीभवम् ।
चकारानसनं धीरः स दिनानि बहून्यलम् ॥४३॥ ...१-नेमिदत्त ब्रह्मचारी वि० सं० १५७५ क लग- आराधना समाराध्य विधिना स चतुर्विधाम् । भग हुए हैं।
समाधिमरणं प्राप्य भद्रबाहुर्दिवं ययौ ॥ ४४ ॥
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