Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 41
________________ अङ्क ७-८] कदम्बवंशीय राजाओंके तीन ताम्रपत्र। २२५ इन पंक्तियोंके द्वारा, काशीनाथजीने अपने पत्र इसी क्रमसे लिखे गये हों जिस क्रमसे अनुसंधानका नतीजा निकाला है, और वह इन पर प्रकाशनके समय नम्बर डाले गये हैं। इस प्रकार है: तीनों पत्रोंमें 'स्वामि महासेन' और 'मातृ'हमें ऐसा निश्चित हुआ है कि कदम्ब- गण' का उल्लेख पाया जाता है जिनके अनुवंशकी दो शाखाएँ थीं, जिनमेंसे एकको 'गोआ, ध्यानपूर्वक कदम्ब राजा अभिषिक्त होते शाखा और दूसरीको ‘वनवासी' शाखाके थे । जान पड़ता है 'स्वामि महासेन' कदम्ब तौर पर निरूपण किया जा सकता है। यह वशक कोई कुलगुरु थे । इसीसे राज्याभिबिलकुल संभव है कि इन दोनों शाखाओंके षेकादिकके समयमें उनका बराबर स्मरण किया मध्यमें कुछ सम्बंध था, परंतु इस समय उस जाता था। परंतु स्वामि महासेन कब हुए हैं विषयका निर्णय करनेके लिये हमारे पास आर उनका विशेष परिचय क्या है, ये सब सामग्री नहीं है । हमारा यह भी निश्चय बात अभी अधकाराच्छन्न हैं । मातृगणसे अभिहै कि जिन राजाओंका हमारे इन पत्रोंमें प्राय उन स्वर्गीय माताओंके समूहका मालूम उल्लेख है वे 'वनवासी' शाखाके थे. और होता हैं जिनकी संख्या कुछ लोग सात, कुछ यह कि उन्हें सर डबल्यू एलियटके पत्रमें आठ और कुछ और इससे भी अधिक मानते गिनाये गये वनवासी कदम्बोंसे एक मित्र हैं। जान पड़ता है कदम्बवंशके राजघराने में विभागमें स्थापित करनेकी कोई काफी वजह . इन देवियोंकी भी बहुत बड़ी मान्यता थी। नहीं है। इसके सिवाय, हमारा निर्णय यह । जिन कदम्ब राजाओंकी ओरसे ये दानपत्र है कि ये राजा अपने पत्रारूढ दानोंसे स्वतंत्र ! लिखे गये हैं वे सभी ‘मानव्यस' गोत्रके सम्राट् मालूम होते हैं, न कि चालुक्य राजा. , ५५ थे, ऐसा तीनों पत्रोंमें उल्लेख है । साथ ही, ओंके मातहत ( अधिकाराधीन ), जैसा कि पहले दो पत्रोंमें उन्हें 'हारितीपुत्र' भी लिखा उनके उत्तराधिकारी थे । और यह कि वे है । परंतु 'हारिती' इन कदम्बवंशी राजासंपूर्ण संभावनाओंको ध्यानमें लेने पर भी आकी साक्षात् माता मालूम नहीं होती, बल्कि ईसाके बाद पाँचवीं शताब्दीसे पहले हुए जान 3 - उनके घरानेकी कोई प्रसिद्ध और पूजनीया पडते हैं। अन्त में हमारी यह बजती स्त्री जान पड़ती है जिसके पत्रके तौर पर ये यहाँ इस बातके विश्वास करनेकी बहुत बड़ी समा । __ सभी कदम्ब पुकारे जाते थे, जैसा कि आज वजह है कि ये प्राचीन कदम्ब जैनमतानयानी कल खुर्जेके सेठोंको ‘रानीवाले' कहते हैं। थे, जैसा कि हम कछ बादके कदम्बोंको अब हम इस समुच्चय कथनके अनन्तर प्रत्येक उनके दानपत्रों परसे पाते हैं। दानपत्रका कुछ विषद परिचय अथवा सारांश देकर इन तीनों दानपत्रोंकी बहुतसी शब्दरचना मूलपत्रोंको ज्योंका त्यों उद्धृत करते हैं:परस्पर कुछ ऐसी मिलती जुलती है कि जिससे +यथा:-"ब्राह्मी माहेश्वरी चैव कौमारी वैष्णवी तथा। ___ माहेंद्री चैव वाराही चामुंडा सप्तमातरः॥" एक दूसरेको देखकर लिखा गया है, यह “ब्राह्मी माहेश्वरी चंडी वाराही वैष्णवी तथा। कहनेमें कुछ भी संकोच नहीं होता। परंतु कौमारी चैव चामुंडा चर्चिकेत्यष्ट मातरः॥ सबसे पहले कौनसा पत्र लिखा गया है, यह देखो ‘संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी' वामन शिवअभी निश्चित नहीं हो सका । संभव है कि ये राम आपटेकी बनाई हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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