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पुस्तक-परिचय।
अङ्क ७-८]
२३१ प्रेमी और नये नये अनुसंधानोंको जाननेके ३ श्रीशारदा-सचित्र मासिकपत्रिका । इच्छुक प्रत्येक दिगम्बर और श्वेताम्बर संपादक, साहित्यशास्त्री पं० नर्मदाप्रसाद मिश्र, जैनी भाईको इसका ग्राहक होकर संपा- बी. ए., विशारद । मूल्य, ५) रु० वार्षिक, दक तथा प्रकाशकके उत्साहको बढ़ाना मिलनेका पता, प्रबंधक 'श्रीशारदा,' दीक्षितचाहिये । अजैन विद्वान् भी इससे बहुत कुछ पुरा, जबलपुर । लाभ उठा सकते हैं । मँगानेका पता-मैनेजर यह पत्रिका हालमें नई प्रकाशित होनी शुरू 'जैनसाहित्यसंशोधक' ठि० भारत जैन- हुई है। अभी तक इसके चार अंक निकले हैं। विद्यालय, फर्गुसन कालिज रोड, पूना सिटी है। आकार इसका 'सरस्वती' जैसा और पृष्ठसंख्या अन्तमें हम इतना निवेदन कर देना उचित ६८ के करीब है। इसमें हिन्दीके अच्छे अच्छे समझते हैं कि इस पत्रमें संपादकीय विचार प्रसिद्ध विद्वानोंके लेख निकलते हैं। प्रत्येक हिन्दीमें प्रकट होने चाहियें और साथ ही शुद्ध अंकमें अधिकांश लेख बहुत कुछ उपयोगी, छपनेकी ओर कुछ अधिक ध्यान रखे जानेकी पढ़ने तथा विचारनेके योग्य होते हैं। हिन्दीकी जरूरत है।
इसे उच्चकोटिकी पत्रिका समझना चाहिये। २ जैसवाल जैन । मासिकपत्र । सम्पादक
यदि यह बराबर चलती रही तो इसके द्वारा महेन्द्र । मूल्य, १) रु० वार्षिक । मिलनेका पता,
हिन्दी संसारका बहुत कुछ उपकार होना संभव
' है। हिन्दी भाषाके प्रेमियोंको इसे जरूर अपजैसवाल जैन कार्यालय, मानपाड़ा, आगरा। नाना चाहिये।
यह पत्र भारतवर्षीय जैसवाल जैन सभाका ४ वैद्य-मासिकपत्र । संपादक, वैद्य शंकरमुखपत्र है और कोई ढाई सालसे जारी है। लालजी (जैन)। मूल्य, ११) रु० वार्षिक । मिल तीसरे सालका पहला संयुक्त अंक नं० १-२ नेका पता, वैद्य शंकरलाल हरिशंकर, आयुर्वेदोइस समय, हमारे सामने है, बादके अंक शायद द्धारक औषधालय, मुरादाबाद। अभी तक प्रकाशित नहीं हुए। इस अंकके लेख यह अपने विषयका एक अच्छा पत्र है और पिछले सालके अंकोंकी अपेक्षा अच्छे हैं कई वर्षसे जारी है। समय समय पर इसमें
और अनेक विद्वानोंके लिखे हुए हैं। संपादक अनेक रोगोंकी ओषधियोंके नाना वैद्योंद्वारा महाशयने इस अंकको खास अंकके तौर पर किये हुए अनुभूत तथा परीक्षित प्रयोग भी निकालनेका विचार प्रकट किया था और ऐसा निकला करते हैं जिनसे पाठक बहुत कुछ लाभ लिखकर कुछ विद्वानोंको लेख भेजनेकी प्रेरणा उठा सकते हैं। कविताएँ भी इसमें अपने ही भी की थी। परंतु किसी वजहसे फिर वे इसे विषयकी मनोरंजक रहती हैं । इस वर्षका चौथा खास अंकके तौर पर नहीं निकाल सके । अस्तु अंक इस समय हमारे सामने है। इसके प्रायः यह पत्र जैसवाल जैनोंकी उन्नतिके लिये बहुत सभी लेख पढ़नेयोग्य हैं, खासकर शिशुका कुछ प्रयत्नशील रहता है, अतः हमारे जैसवाल प्राकृतिक खाद्य और मानसिक रोग नामके भाईयोंको खास तौरसे इसका ग्राहक होना लेख 'स्वास्थ्य-सर्वस्व' नामकी कविता भी अच्छी चाहिये और इस तरह अपने जातीयपत्रके है, जिसका प्रथम पद्य इस प्रकार है:उत्साहको बढ़ाकर उन्नतिमें अग्रसर होनेके लिये सुखसम्पतिसे भरा सदन है, वर वैभव है । सहायता देनी चाहिये।
प्रभुता है, पाण्डित्य, प्रशंसा, गुणगौरव है ।।
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