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अङ्क ७-८]
हिन्दी ज्ञानार्णव । अनेक हैं और वे सब बड़े ही हृदयग्राही तथा सत्य- हिन्दी ज्ञानार्णव । प्राय मालूम होते हैं। बाबू साहब सामाजिक घटनाओंका चित्र खींचनेमें बहुत कुछ सिद्धहस्त हैं । उनका यह चरित्र-चित्रण निःसन्देह अच्छा हुआ है। अलीगंज जि० एटासे बाबू कामताप्रसादजी धर्मात्मापनेकी कुछ रजिष्टर्ड-नुमायशी क्रिया- पी० जैन लिखते हैं कि मैं स्थानीय मंदिरजीमें ओंको करनेवाले कैसे कैसे बेईमानी और अधर्मके शास्त्रोंके कुछ अस्तव्यस्त पत्रोंको देख रहा था, काम किया करते हैं उनका इस पुस्तकमें अच्छा तो उनमें एक पत्र पर अत्यंत ही मनोहर, भावदिग्दर्शन कराया गया है । आजकल ऐसे ही नकली पूर्ण-परंतु कठोर छंदोंको संकलित देखा । प्रारंधर्मात्माओंका आधिक्य है-साथ ही, उक्त भमें लिखा हुआ है 'हिन्दी ज्ञानार्णवके छंद;' क्रियाओंको न करते हुए भी, असली धर्मात्मा- फिर सवैया ३१ सा और दोहोंमें वृद्धाधिकार
ऑकी परिणति शील-शांति-संतोषपूर्वक कैसी सम्यग्ज्ञानाधिकार आदि विषयों पर कविता है; ईमानदारीको लिये हुए, सत्यनिष्ठ, निष्कपट और अन्तमें लेख है कि “मिती आस्विनसुदी ३ दया तथा प्रेममय होती है, यह भी दर्शाया है। जीवालालने सं० १८६५ वि० में लिखा ।" यद्यपि यह पुस्तक खास जैनियोंको लक्ष्य करके इससे मालूम होता है कि हिन्दीमें भी 'ज्ञानार्णव' लिखी गई है और दूसरोंकी तरफ सिर्फ कुछ नामका कोई ग्रंथ बना है जिसपरसे जीवालालने इशारा ही किया गया है, तो भी दूसरे धर्मावलम्बी अपनी रुचि तथा आवश्यकताके अनुसार कुछ इससे बहुत कुछ शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। छंदोंको उक्त पत्र पर उध्दृत कर रखा था। अच्छा होता यदि दूसरे धर्मके धर्मात्माओंके भी यह ग्रंथ कब बना है और किसने बनाया है, इसमें खास खास चित्र रहते और इसे एक अच्छे इन बातोंका उक्त पत्र परसे कोई पता नहीं चित्रालयका रूप दिया जाता । अस्तु, पुस्तक चलता। हाँ, इतना पता जरूर चलता है कि उपयोगी, सब स्त्रीपुरुषोंके पढ़ने और संग्रह किये ग्रंथ वि० सं० १८६५ से पहलेका बना हुआ जानेके योग्य है । छपाई पुस्तककी कुछ अच्छे हैं। बाबूसाहब लिखते हैं कि “यहाँ पर ऐसा ढंगसे नहीं हुई, उसमें बहुतसी अशुद्धियाँ भी पाई कोई ग्रंथ नहीं है और न मेरे सुननेमें ही कोई जाती हैं और साथ ही कागज भी घटिया लगाया हिन्दी ज्ञानार्णव नामक ग्रंथ आया है ।” अस्तु; गया है। आशा है दूसरी आवृत्तिमें इस प्रकारकी हमारे खयालमें यह वही छंदोबद्ध ज्ञानार्णव त्रुटियोंके दूर करनेका यत्न किया जायगा। होगा जो जैनसिद्धान्तभवन आराकी, हस्तलि
८एक आदर्श जीवन । ले०,पं० कन्हैयाला- खित भाषाग्रंथोंकी, सूचीमें नं० २३७ पर दर्ज लजी जैन, कस्तला। प्रकाशक,श्री आत्मानंद जैन है। सूचीमें ग्रंथकर्ताका नाम लक्ष्मीचंद, पत्रट्रेक्ट सोसायटी, अम्बालाशहर । मूल्य, एक आना। संख्या १११, श्लोकसंख्या . ३०००, और ___ इस पुस्तकमें सम्राट अकबर द्वारा पूजित श्वेता- लिपिकाल सं० १८६९ दिया है । वाबूसाहबने म्बराचार्य श्रीहीरविजयसूरिका ७६ पद्योंमें संक्षिप्त उक्त पत्र परसे, जिन छंदोंको उद्धृत करके
जीवन वृत्तांत है। रचना प्रायः अच्छी है और हमारे पास भेजनेकी कृपा की है और जिन्हें । पुस्तक पढ़ने योग्य है । कहीं कहीं कुछ अशुद्धियाँ हम अपने पाठकोंके परिज्ञानार्थ नीचे प्रकट करते जरूर पाई जाती हैं जिनसे छंदोभंग हो गया है। हैं उनमें स्त्रीवर्णनसम्बंधी एक दोहेमें 'चंदबुद्धिकी
संपदा' ये शब्द आये हैं । इनसे कविने अपना
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