Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 46
________________ २३० जैनहितैषी - पुस्तक- परिचय | १ जैनसाहित्यसंशोधक । यह वही त्रैमा सिक पत्र है जिसके निकाले जानेके विचारॉकी सूचना एक आवेदन पत्रद्वारा, जो जैनहितैषी अंक नं० २-३ के साथ बँटा है, दी गई थी । अब यह पत्र पूनासे निकलना प्रारंभ हुआ है । विद्वद्वर मुनि जिनविजयजी - इसके संपादक हैं । अभी इसका पहला ही अंक प्रकाशित हुआ है और वही इससमय हमारे सामने है | इस अंकको देखनेसे मालूम होता है कि यह पत्र 'सरस्वती' के आकार में १२४ पृष्ठों पर निकाला गया है । प्रेस ऐक्टके अनुसार सरकारसे डिक्लेरेशन लेनेकी दिक्कतके कारण, अभी इसे त्रैमासिकका रूप न देकर एक ' निबंधसंग्रह ' का रूप दिया गया है । इससे, यद्यपि यह पत्र नियतकालिक नहीं रहता तो -भी सालमें इसके चार अंक यथावसर जरूर निकाले जायँगे; इसीसे इसका वार्षिक मूल्य ५) रु० और प्रत्येक अंकका १ | | ) रुपया रक्खा गया है । इस अंक के साथमें दो सुन्दर चित्र भी लगे हुए हैं, जिनमें से महावीर भगवानकी निर्वाणभूमि पावापुरीका रंगीन चित्र बड़ा ही चित्ताकर्षक और मनोमोहक मालूम होता है, दूसरा चित्र चितौड़गढ़ के किसी प्राचीन जैनकीतिस्तंभका फोटो है जो संभवतः दिगम्बर सम्प्रदायका है । पत्र में इन दोनों चित्रोंका कोई परिचय विशेष नहीं दिया जिसके दिये जाने की जरूरत थी । ये दोनों चित्र आराके श्रीयुत कुमार देवेंद्रप्रसादजीने अपने खर्चसे तयार कराकर पत्रको भेट किये हैं। इस अंकमें प्रायः चार लेख हिन्दीके, चार गुजरातीके और दो अंग्रेजीके, इस तरह तीन भाषाओंके प्रायः - इस लेख हैं । लेख प्रायः सभी अच्छे, पढ़ने Jain Education International [ भाग १४ और विचार किये जानेके योग्य हैं । ' हरिभद्रसूरिका समयनिर्णय' नामका हिन्दी लेख बड़े महत्त्वका है, अनेक ऐतिहासिक बातोंको लिये हुए है और बहुत कुछ परिश्रम तथा परिश्रम के साथ लिखा गया है । वास्तव में यह लेख उस संस्कृत निबंधका अनुवाद जान पड़ता है जिसे मुनि जिनविजयजीने, गत नवम्बर मासमें होनेवाली, पूनाकी ओरियंटल कान्फरेंसके सामने पढ़ा था और जो अब चार आने मूल्यमें उक्त पत्रके आफिससे मिलता है । अथवा यह भी संभव है कि पहले यह लेख हिन्दीमें ही तय्यार हुआ हो और फिर इसीका संस्कृत अनुवाद उक्त कान्फरेंसमें पढ़ा गया हो । कुछ भी हो, मुनिजीने पत्रमें इस विषयका कोई नोट नहीं दिया। दूसरा विस्तृत हिन्दी लेख ' सिद्धसेन दिवाकर और स्वामी समंतभद्र ' के विषयका वह है जो जैनहितैषी के पिछले कई अंकों में प्रकाशित हो चुका है। तीसरा हिन्दी लेख ' हरिषेणकृत कथाकोश ' हितैषीके इस अंकमें उद्धृत किया जाता है। गुजराती लेखों में डाक्टर हर्मन जैकोबीकी लिखी हुई 'कल्पसूत्रकी प्रस्तावना ' का अनुवाद, और पं० बेचरदास जीवराजजी न्याय - व्याकरणतीर्थका लिखा हुआ 'जैनागमसाहित्यकी मूल भाषा क्या थी और अर्धमागधी किसे कहते ' इस आशयका लेख, ये दोनों ही लेख खास तौरपर ध्यानके साथ पढ़े जाने और विचार किये जानेके योग्य हैं । हमारे खयाल में पत्र बहुत अच्छा है और छपाई, सफाई और कागज की दृष्टिसे भी कुछ बुरा नहीं है । ऐसे एक पत्रकी जैनसमाजमें बड़ी जरूरत थी । आशा है इस पत्रके द्वारा जैनइतिहासकी बहुतसी त्रुटियाँ दूर होंगी, अनेक नई नई बातें मालूम होंगी, प्राचीनसाहित्यकी खोज होगी और साथ ही, तत्त्वज्ञान पर भी कुछ अच्छा प्रकाश पड़ेगा | इतिहास - 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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