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अङ्क ७-८] मुक्तिके मार्ग ।'
१११. मुक्तिके मार्ग । प्रकारके सिद्धान्त पर आना पड़ता है । परन्तु
दुःखकी बात यह है कि जिस रसनाने एक बार
ज्ञानवृक्षके फलका रसास्वादन कर लिया है उसे [ अनु०-श्रीयुत पं० नाथूराम प्रेमी।] उस रसके खोजनेसे रोकना एक प्रकारसे
बहुत समयसे एक किम्वदन्ती चली आ रही असाध्य कार्य हो जाता है और इस लिए इस है कि मनुष्यजातिके आदिम माता पिताने रोकनेकी चेष्टासे कुछ भी लाभ नहीं होता है। (आदम और हव्वाने) ज्ञानवृक्षके फल खाकर तो भी, जब दुःखनिवृत्ति ही परम पुरुषार्थ है संसारमें पाप, दुःख और मृत्युको निमंत्रण और उस परमपुरुषार्थके साधनका उपाय करना दिया था। .
ही मानवजातिके गुरुओं और शिक्षकोंके जीवइस किम्वदन्तीमेंसे एक आध्यात्मिक तत्त्व
- नका व्रत है, तब उन गुरुओं और शिक्षकोंने निकाला जा सकता है । ज्ञानसे पापकी और मानवोंके दुःख दूर करनेके लिए किस किस प्रकातज्जात दुःखकी उत्पत्ति हुई है । अज्ञान अवस्थामें रके उपाय किये, यूरोपके लगभग डेढ़ हजार पाप नहीं है और तज्जात दुःख भी नहीं है। वर्षके इतिहासमें, वे खूनके अक्षरों में लिखे हुए हैं। यह जगतका अन्यतम विभीषिकामय सत्य है। सभ्यताके प्रारंभिक कालमें, यूरोपमें यूना
अन्य स्थानों में इससे सर्वथा विपरीत और नने जो ज्ञानका दीपक जलाया था, वह कई एक तत्त्व प्रचलित है । जिस तरह ज्ञानसे सौ वर्षातक सारे पश्चिमी देशोंको आलोकित दुःखकी उत्पत्ति मानना किसी किसी समाजके करता रहा था। पीछे, ईसाई मतका अभ्युदय प्रचलित धर्मतत्त्वकी दीवार है. उसी प्रकार होनेपर, राष्ट्रीय शक्ति और याजक शक्ति ज्ञानकी पर्णता होनेसे दःखका विनाश मामा (पादरियोंकी शक्ति) ने एक होकर, किस अन्य कई समाजोंके प्रचलित धर्मतत्त्वकी जड है। प्रकारसे उस ज्ञानके दीपकको बुझाकर गभीर यहाँ इस बातकी आलोचना करनेकी आव
- अन्धकारकी सृष्टि की, सो इतिहासमें स्पष्ट शब्दोंमें श्यकता नहीं है कि इनमेंसे कौनसी बात सत्य
लिखा हुआ है। कोई डेढ़ हजार वर्षतक ईसाई है। पर यह स्वीकार किये बिना नहीं चल
पादरियोंने किसीको भी किसी प्रकारका उजेला सकता कि दोनों बातोंके मूलमें कुछ न कुछ केवल यही इतिहास है। उसने बड़ी ही निल.
नहीं करने दिया * । यूरोपके ईसाई मतका सत्य अवश्य छुपा हुआ है। तब यह ऐतिहासिक सत्य है कि उक्त दो
जताके साथ अपनी सारी शक्ति इस दीवारकी वाक्य मानवजातिके दो बड़े समाजोंको एक * ईसाई धर्मका इतिहास बड़ा ही भयंकर है। दूसरेसे सर्वथा भिन्न दो मार्गों पर खींच ले बाइबलमें जो कुछ लिखा हुआ है, उसके विरुद्ध कोई गये हैं।
एक शब्द भी नहीं कह सकता था । यदि कोई
विद्वान् कोई नई खोज करता था जब ज्ञानसे दुःखकी उत्पत्ति हुई है, तब
और वह बाइबलसे
विरुद्ध होती थी, तो उसकी शामत आ जाती थी। जान पड़ता है कि किसी न किसी तरहसे-योग- गैलेलियोने जब यह सिद्धान्त प्रकाशित किया कि यागसे-ज्ञानका नाश साधन कर सकनेसे ही पृथ्वी चलती है और सूर्य स्थिर है, तब सारा ईसाईदुःखसे रक्षा की जा सकती है । कमसे कम संसार उसपर टूट पड़ा और उसको बड़े ही अमातर्कशास्त्रकी निर्दिष्ट युक्तियोंके बलसे इसी नुषिक कष्ट दिये गये।
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