Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 5
________________ समभकी नय। प्रधानतासे यह स्थिति अभेदोपचारके रूपसे रहती जे घटम्प द्रव्य पदार्थके अस्तित्वधर्मका है। इन दोनोंके द्वारा अनेकान्तवादकी सूचना आधार है वहीं घट द्रव्य अन्य धर्माका भी आधार होती है । यस प्रकार एक आधारमें अर्थात एक ही पत्रा- ३-जैसे वस्तमें धोकी स्थिति आठ प्रकारस थमें सब धमाकी स्थिति अर्थसे अभेदवृति है : रहती है, वैसे ही किसी वस्तका निजरूप चार र सम्बन्ध । प्रकारसे होता है । वे चार प्रकार ये हैं-नामजा शायद सम्बन्ध अभेदरूप अस्तित्वका स्थापना-द्रव्य और भाव। जैसे, मृत्तिकासे कितनी घटके साथ है वही शायद' सम्बन्ध रूप ही वस्तुयें बनी हैं परन्तु घट नाम एकका ही है। घट आदि अन्य मब धर्माका भी घटके साथ है । राह जिस स्थानमें रक्खा है वह उसका क्षेत्र है, जैसे मम्बन्धी अभेदवृति है ! चाट एक पत्थर पर रक्खा है, तो पत्थर उसका ५ उपकार : क्षेत्र है । दूसरा पत्थर अथवा तख्ता जहाँ वह नहीं जो अपने स्वरूपमय वस्तुका करना उपकार, रखरखा है वह उसका 'परक्षेत्र है। यह स्थापना परमत्तिका द्रव्य है, सुवर्ण द्रव्य नहीं है । स्तित्वका चटके साथ है वही अपना वैशिष्टयः ।। यह द्रव्य है । घट जिसकालमें है वह उसका भाव सम्पादन उपकार अन्य धर्मका भी है । यह उप है । यह वर्तमानकाल ही हो सकता है, भूत अथवा कार वृत्ति है। भविष्यत् काल नहीं। गुणिदेश . सारांश यह है कि वस्तका निजरूप जानष्टकं जिस देशमें अपन रूप (अपक्षा) से नके लिए उसे इन चार बातोंसे देखना चाहिए, अस्तित्व धर्म है. उसी देशमें अन्यकी अपक्षासे ' अर्थात् उस वस्तुका नाम, उसकी स्थापना नास्तित्व आदि सम्पूर्ण धर्म भी हैं, इसलिए देश ( क्षेत्र ), उसका द्रव्य और उसका भाव दिन नहीं है। अर्थात् काल । संसर्ग। उदाहरण- घटका नाम घट है, कँडीजिसप्रकार एक वस्तुत्व स्वरूपसे अस्तित्वका और 12 नांदी आदिका नहीं । ये उसके परिणाम हैं। स्टमें संसर्ग है. वैसे ही एक वस्तुत्व रूपसे अन्य चटकी स्थापना वही क्षेत्र है जहाँ वह धरा गव धाकानी संसर्ग है. इसलिए संसर्गसे अभेद संद है, दूसरा क्षेत्र नहीं । घटका द्रव्य मृत्तिका है, वृत्ति हुई। सुवर्ण नहीं । घटका काल वर्तमान है, भूत भवि८ शब्द। ष्यत् नहीं । षटकी मृत्तिकादि उसका द्रव्यरूप जो ' अस्ति' शब्द अस्तित्वधर्मस्वरूप घट अर्थात् निजरूप है और मृत्तिकासे जो सैकड़ों आदि वस्तका भी वाचक है उसी वाच्यत्वरूप चीजें बनती हैं जैसे फॅटी-मटकना-नाँदी आदि शब्दसे सब प्रकी घट आदि पदार्थोमें अभेद- ये उसके पर्यायरूप हैं । प्रत्येक वाक्यका स्पष्ट वृत्ति हैं । इस प्रकार सब धर्मोकी अभेदरूपसे विवरण इस प्रकार है:घटमें स्थिति रहती है । इस रीतिसे द्रव्यार्थिक १-शायद घट है। इसका यह अर्थ है कि नयकी प्रधानतासे बस्तुमें सब धर्मों की अभेदर- वट अपने निजलमसे है, अर्थात् नाम, स्थापना पसे स्थिति रहती है और पर्यायार्थिक नयकी (क्षेत्र) द्रव्य और भाव (काल ) से है। टेदी गर्दन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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