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भावना और सामायिकका रहस्य ।
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पूजन आदि क्रियाओंके करनेमें काम आवे तब ही भली भाँति - एकाग्रतासहित सब क्रियायें हो सकती हैं । प्रत्येक शब्दके उच्चारण, पाठ, और विचार के साथ साथ दूसरी जो सैकड़ों अनुवर्गणायें ( Associa - tions ) स्वभावतः चली आती हैं, वे ऐसी भाषाके बोलनेसे कि जिसके शब्द समझमें नहीं आते हैं, या समझने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है, आनी बंद हो जाती हैं । अतः जिस भाषा में हम विचार करते हैं उसही भाषामें सामायिक पाठका भी उच्चारण करना चाहिए, स्मरण करना चाहिए। ऐसा करने पर ही सामायिक तल्लीनतापूर्वक हो सकेगी । यह भी ध्यानमें रखना चाहिए कि सामायिक तल्लीन - ताका दूसरा - पर्यायवाची शब्द है । सामायिक यह किसी पाठका नाम न होकर मान - सिक स्थितिका नाम है अतः ऐसी मानसिक स्थिति उत्पन्न करनेके लिए जो शब्द - समूह उपयोगी हो उसे ही काममें लाना चाहिए । वर्तमानमें जो सामायिक पाठ
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प्रचलित है, वे प्राकृत, हिन्दी, उर्दू, बुन्देलखण्डी, ब्रज और मारवाड़ी भाषाओंकी खिचड़ी हैं। ऐसे पाठोंका प्रचलित रहना - जिसको किसी देशके भी लोग भली भाँति नहीं समझ सकते हैं, कदापि ठीक नहीं हो सकता । ऐसे पाठको कई वर्षोंसे लाखों मनुष्य बिना किसी भाँतिका परिवर्तन किये किस प्रकार पढ़ते रहे हैं, यह विचार जैनविचारनेताओंके प्रति उत्पन्न होनेवाली मेरी सम्मान-बुद्धि को रोक देता है । यह स्थितिचुस्तता Conservatism ( मुर्दापन ) का चिह्न है । इसलिए मैं आग्रहपूर्वक कहूँगा कि आत्मविद्या, मानसशास्त्र और कुछ अंशोंमें हिप्नोटिज्म auto sugge stions वाले विभागके ज्ञानकी सहायता से सामायिकके पाठ, हिन्दी, गुजराती, मराठी, बँगाली, कनड़ी, पंजाबी और अँगरेज़ी आदि सब भाषाओं में बनानेका प्रयास करना चाहिए। इसके लिए पूर्ण अवकाश भी है और इसकी आवश्यकता भी है । (अपूर्ण)
( गुजराती जैनहितेच्छुसे )
तुम्हारा जीवन चाहे कितना ही छोटा और नीचा क्यों न हो तुम्हें चाहिए कि उसका स्वागत करो और उसे आनन्दपूर्वक व्यतीत करो । उससे दूर मत हटो, उसे बुरा मत समझो और उसकी निन्दा मत करो । वह इतना बुरा नहीं है जितने तुम | जब तुम बहुत धनी होते हो तब यह बहुत निर्धन मालूम होता है । दोष हूँढनेवाले स्वर्ग में भी न मानेंगे । वे वहाँ भी दोष निकालते ही रहेंगे । अपने जीवनसे प्रेम करो, चाहे वह कितना ही तुच्छ हो । गरीबसे गरीब घरमें भी तुम्हें कुछ घंटे आनंददायक मिलेंगे । प्रकृतिकी सुन्दरतासे अमीर, ग़रीब दोनों एकसा लाभ और आनन्द उठा सकते हैं । सूर्यास्तकी सुन्दरता जैसी गुरी - बोंके झोपड़ों में मालूम होती है वैसी ही अमीरोंके महलोंमें भी मालूम होती है । संतोषी आदमीको झोपड़ी में भी वैसा ही आनंद मिलता है जैसा महलोंमें ।
( थारो )
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