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वस्तु नीचे क्यों गिरती है ?
ओर आकृष्ट हो जाती है, तो क्या आश्चर्य है ?
चल जायगा । क्या तुम जानते हो कि स्प्रिंग(Spring Balance ) किसे
का कांटा
वि०- परन्तु यह लोहेकी तो है नहीं और कहते हैं ? न नीचे कोई चुम्बक ही है ।
मा०
To - पृथ्वी भी एक प्रकारका चुम्बक है उसमें विशेषता यह है कि वह प्रत्येक वस्तुको खींच लेती है; केवल लोहेहीको खींचे, यह बात इसमें नहीं ।
वि० - यह तो बड़ी विलक्षण शक्ति है । इस शक्तिके मान लेनेसे अवश्य वस्तुका नीचे गिरना तो समझमें आजाता है; परन्तु यही कारण है ऐसा अभी विश्वास नहीं होता ।
मा० - यदि और कुछ प्रमाण मिले तब तो विश्वास होगा ? अच्छा यह बताओ कि चुम्बक सुईको कितनी दूरसे खींच सकता है? वि०—थोड़ी दूरसे अधिक दूरी होनेपर बल बहुत कम होजाता है और उस बलसे सुई नहीं खिंच सकती ।
मा०–तो ज्यों ज्यों उनका अंतर बढ़ता जाता है त्यों त्यों आकर्षणका बल घटता जाता है । यदि यही बात पृथ्वी और इस दो सेरकी वस्तु में हुई तो ?
वि०-तब तो कुछ विश्वास होसकता है; परन्तु यह आप कैसे नाऐंगे ? क्या कोई ऐसा मी स्थान है जहाँ पृथ्वीका आकर्षण न रहे ! वहाँसे छोड़नेपर वस्तु पृथ्वीपर न गिरेगी ?
मा० - नहीं, ऐसी जगह ढूँढने की कोई आवश्यकता नहीं है, उसके बिना भी काम
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वि० - वही एक सुईदार कांटा जिसपर लटकानेसे वस्तुका भार सुई बतला देती है । मा० - अच्छा यह लो काँटा, इससे इस वस्तुको तौलो तो ।
वि
० - यह तो पूरे दो सेर है । मा० - अब इसे मंसूरी पहाड़पर ले जाकर काँटेसे तौलें तो कितनी निकलेगी ? वि० - इतनी ही दो सेर । वहाँ तौलो या यहाँ तौलो, फरक ही क्या है ?
इसी
मा० - नहीं, अवश्य कुछ कम निकलेगा । वि०- यदि कम होगा तब तो अवश्य पृथ्वीका आकर्षण पाया जायगा । अबकी बार जाऊँगा तब अवश्य तौल कर देखूँगा । परन्तु यदि वास्तव में ऐसा ही है तो अद्भुत बात है । यदि कोई व्यापारी यहाँ से 1 वस्तु खरीदकर पहाड़ पर बेचे तो उसे तो तौलमें ही घाटा रह जावे ।
मा०- नहीं, घाटे जितना तो फरक कढ़ाचित् ही निकले; परन्तु कम अवश्य निकलेगा यदि ऐसे ही काँटेसे तौलें ।
वि० – क्यों ? सोनेकीसी बहुमूल्य वस्तुमें तो थोड़ा अंतर भी बहुत है । परन्तु यह आपने क्या कहा ? क्या यह ऐसे ही काँटोंकी विशेषता है ?
मा०- ० - नहीं, बात यह है कि साधारण तराजूमें वस्तुपर पृथ्वीका बल कितना है
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