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अनुवादकी खूबियाँ दिखलानेके लिए इससे दूसरी तीसरी किरणकी समालोचना समाप्त अधिक स्थान रोकना अच्छा नहीं । जो पाठक हो चकी। इस किरणके प्रायः सब ही लेखोंपर संस्कृत जानते हों उनसे हमारी प्रार्थना है कि .
क हम विचार कर चुके । सम्पादकीय टिप्पणी वे इस शिलालेखके अनुवादका प्रत्येक वाक्य मूलसे मिलान करके देखें और द्विवेदीजीके
MA और पुस्तक पर्यवेक्षण लेखोंपर विचार करनेकी पाण्डित्यकी तथा सेठ पद्मराजजीके प्रचण्ड विशेष आवश्यकता नहीं जान पड़ती । आगामी सम्पादकत्वकी प्रशंसा करनेका पुण्य सम्पा- अंकसे भास्करकी अन्तिम किरणकी आलोचना दन करें।
शुरू होगी।
०६९
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वस्तु नीचे क्यों गिरती है ?
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लेखक-श्रीयुक्त बाबू निहालकरणजी सेठी एम. एस. सी. विद्यार्थी-मास्टर साहिब, सब कोई कहते यही कहते हैं कि यह तो वस्तुका स्वभाव ही हैं कि जड़ पदार्थ बिना किसीकी सहायताके है कि नीचे गिर पड़े। अथवा बिना बलके एक स्थानसे दूसरे स्थान मा०-अच्छा आन तुम्हें यही बात समतक नहीं जा सकता-यह बात कुछ ठीक झावेंगे । यदि वस्तुका स्वभाव ही नीचे गिर नहीं जान पड़ती । यह पैंसिल हाथमेंसे छोड़ जानेका होता है तो गुब्बारा ऊपरको क्यों देने पर अपने आप ही नीचे गिर पडती है, जाता है ? पक्षी आकाशमें कैसे उड़ते हैं ? इसको तो कोई सहायता नहीं देता। पतंग क्यों घंटों वायुके मध्य डटा रहता है ?
मास्टर-नहीं, तुम भूलते हो । यह स्वयं वि०-गुब्बारा तो हलका होता है। पक्षी नहीं गिर पड़ती । इसको नीचेकी ओर खस- अपने परोंके बलसे उड़ते हैं और पतंगको कनमें अवश्य सहायता मिलती है । कोई न हवा ऊपर स्थित रखती है। कोई निःसन्देह इस पर बल लगा कर इसे मा०-इसका तो अर्थ यह हुआ कि नीचेकी ओर खींचता है।
ऊपरकी ओर बल लगानेसे वस्तु ऊपरकी वि०-बाह साहिब, कोई भी तो दिख- ओर भी जासकती है। लाई नहीं देता । इसके कोई तागा भी नहीं वि०-इसमें तो कोई नई बात न हुई । बँधा है जो कोई कहीं गुप्त स्थानसे बैठा बैठा जिधर बल लगावेंगे उसही ओर तो वस्तु खींच रहा हो और पिताजी इत्यादि सब चली जायगी।
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