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भगवान महावीर और स्वावलम्बन।
___ कवि, श्रीयुक्त प० गिरिधर शर्मा।
(तुकहीन)
आज्ञा प्रभो दो मुझको, तुम्हारी ___ सेवा करूँ मैं, रह सावधान । होवे न जो संयमका विघात,
चारित्रमें अन्तर त्यों न आवे" ||
श्रीमन्महावीर खड़े हुए थे, ___ ध्यानस्थ हो, जंगलमें मनोज्ञ । आया वहाँ एक गँवार ग्वाला, जहाँ तहाँ गो-कुलको चराता ॥
(२) सो छोड़ गोवृन्द चला गया, यों_ विचार, “ नंगा यह है खड़ा ही। जाने न देगा इनको कहीं भी,
मैं शीघ्र ही लौट सँभाल लूँगा" ॥
श्रीवीरने वाक्य सुरेन्द्रके ये, . .
सुनें, जरा सा मुसकाय बोले । " स्वात्मावलम्बी जनको सुरेन्द्र,
साहाय्य आवश्यक ही नहीं है ।
परन्तु लौटा तब ढोर पाये
नहीं वहाँ, खोज लगा लगाने । फिरा सभी ठौर, पता न पाया,
पीछा महावीर समीप आया ॥
जो ढोर देखे उसने वहाँ पै, ___ मूंदे हुए दृक् करते जुगाली। उत्पात भारी करने लगा वो,
त्यों गालियाँ खूब लगा सुनाने ॥
सहायता दे जन हीनको तू, __पराश्रयी या बलहीनको तू । मुझे न आवश्यकता जरा भी, दे छोड़ चिन्ता इस देहकी तू ॥
(१०) आत्मार्थके साधनमें पराई,
सहायता ले, नहिं वीर ऐसा । आवे करोड़ों दल बाँध विघ्न, उन्हें महावीर हटा रहेगा ॥
(११) डटा रहे जो प्रतिकूलतामें, __ जिसे हिलावें नहिं विघ्नवाधा । न साम्य जावे जिसका कभी भी, __ है वीरका मार्ग महेन्द्र ऐसा ।।
(१२) हुआ नहीं, है नहिं, औ न होगा, __परावलम्बी अरहंत कोई। दे आत्मसामर्थ्य मुझे दिखाने, .
सुरेश, जा तू अपने ठिकाने "॥
आया तभी इन्द्र, उसे निवारा, __ कहा, " अरे ये नहिं चोर भाई । छोड़ा इन्होंने सब राजपाट,
त्रैलोक्यके नाथ मुनीन्द्र हैं ये " ॥
विनीत होके फिर देवराज,
श्रीवीरसे यों कर जोड़ बोला। " असह्य, वर्षों, उपसर्ग होंगे,
ये जान मेरा मन काँपता है ॥
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