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जैनोंकी वर्तमान दशा। THFTTHfilmfinitititition
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है और ज्योंही कोई नई परिस्थिति उत्पन्न हो जाती इन खासियतों पर जुल्मी हथोड़ा मारनेसे कुछ है त्योंही पूर्वके व्यवहारको तोड़ देता है या भी लाभ नहीं होता। मर्यादित अंकुश और बदल देता है । जो समाज बनाने और तोड़नेकी मार्गसूचन करते रहनेसे ही ये खासियतें उच्च शक्ति रखता है उसीको जीता जागता समाज बनाई जा सकती हैं । समाजको इस नियमकी कहना चाहिए और वही उन्नतिपथका पथिक सत्यता समझ लेनी चाहिए और इसीके अनुसार बना रह सकता है । 'बनाना' और ' तोड़ना' अपने व्यवहार शास्त्रमें अखण्ड ब्रह्मचर्य, एक ही ये दो क्रियायें आरोग्य और उत्क्रान्तिकी निशा- बारका ब्याह और पुनर्विवाह इन तीनोंको नियाँ हैं । जो समाज तोड़ नहीं सकता वह यथोचित स्थान देना चाहिए । समाजके नियम बना भी नहीं सकता।
ऐसे होने चाहिए जिनसे सब तरहके योग्य ___ वास्तवमें अखण्ड ब्रह्मचर्य ही इष्ट है। यही अयोग्य- समर्थ असमर्थ-संयमी और इन्द्रि .. धर्म है और यही मनुष्यका लक्ष्यबिन्दु होना यासक्त जीवोंका निर्वाह होता जाय चाहिए । परन्तु जैसे भूमिके भीतर गड़े खोदकर और वे धीरे धीरे आगे बढ़ते चले जायें । रहनेवाले मनुष्य झोपड़ोंमें रहनेके लिए लाचार ब्रह्मचर्य पालन करनेका सबसे ऊँचा व्रत तमाम नहीं किये जा सकते और झोपड़ोंमें रहनेवाले व्यक्तियोंके लिए अनिवार्य-अवश्य पालनीय महलोंमें रहनेके लिए मजबूर नहीं किये जा नहीं ठहराया जा सकता; और यदि ठहरासकते, उसी प्रकार वासनाओं और आवश्यकता- ना ही हो, तो पहले उस व्रतको पोषण करनेओंवाले संसारी मनुष्य अखण्ड ब्रह्मचर्य पालनेके वाला वातावरण उत्पन्न कर देनेका प्रयत्न लिए मजबूर नहीं किये जा सकते । यद्यपि करना चाहिए । “स्त्रीको पुनर्विवाह करना ही ब्याह करना समाजकी दृष्टिमें कोई अधर्म न चाहिए' यदि यह उच्च श्रेणीका नियम और अपराध नहीं है, तो भी बहुतसे उच्च श्रेणी- प्रचलित करना हो, तो समाजको दो बातोंकी के मनुष्य ब्याहके या वासनाओंके कुएमें तैयारी कर रखना चाहिए । एक तो स्त्रीको पति पड़ना पसन्द नहीं करते; वे अपनी बुद्धि और ऐसा सुयोग्य मिलना चाहिए कि जिससे उसके आत्माके भीतर ही अपने इच्छित आनन्दकी मरनेके बाद भी उसके हृदयमें उसका स्मरण प्राप्तिके लिए प्रयास करते हैं। जिन देशोंमें एक जागृत बना रहे और दूसरे पुरुषकी पत्नी पतिके मरने पर दूसरे पतिका कर लेना बुरा बननेका विचार भी उसे बुरा मालूम हो। ऐसा नहीं समझा जाता है उन देशोंमें भी बहुत होनेके लिए यह आवश्यक है कि रोगी, निर्बल, सी स्त्रियाँ पुनर्विवाह करना पसन्द नहीं बुद्धिहीन, अनुभवहीन, दाम्पत्य प्रेमकी पवित्रता करतीं-इससे घृणा करती हैं । यद्यपि ऐसा तथा निस्वार्थताको न समझनेवाले और निर्वाहकी कोई कानून न पहले था और न अब भी है शक्तिसे रहित स्त्री-पुरुष ब्याह ही न कर सकेंकि पतिके मरनेके बाद स्त्रीको मर ही जाना ऐसे अयोग्योंको ब्याह करनेका अधिकार ही चाहिए, तो भी हज़ारों स्त्रियाँ अपनी इच्छासे न रहे । यदि ऐसा हो जाय तो स्त्रीको ब्याहके अपने पतियों के लिए जल मरी हैं और अब भी बाद जो सुख मिलेगा उस सुखका स्मरण उसे जल मरती हैं । मनुष्य हमेशा अपनी खासियतों इतना मीठा लगेगा कि उसे भुला देनेके लिए (Charactristick) के अनुसार ही चलता है। या पुनर्विवाहके लिए वह प्रायः तैयार
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