Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 01
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 71
________________ में भारत जैन महामण्डल | कह दिया कि इस प्रस्तावको सभाके समक्ष उपस्थित करनेके लिए कोई तैयार नहीं होता है, इस कारण यह रद किया जाता है । इस पर श्रीयुत बाडीलालजीने कहा - " यह बिलकुल झूठ है । प्रस्ताव उपस्थित करनेके लिए अमुक महाशय - जो कानूनके आचार्य हैं - तैयार हैं, और यह सभापतिको तथा दूसरे अगुओंको मालूम है । फिर मालूम नहीं, यह प्रस्ताव क्यों रद किया जाता हैं । " इस पर सभापतिने और कई बहाने पेश किये; परन्तु जब उन सबका उचितं उत्तर दिया गया, और दूसरा कोई अच्छा बहाना न मिला, तब उन्हें कहना पड़ा कि “ थोड़े ही दिन पहले मुझे थोड़े समय के लिए एक सरकारी नौकरी मिली है, इसलिए मेरे सभापतित्वमें इस प्रस्तावको पास कराके क्या आप मुझ स्वधर्मीको हानि पहुँचाना पसन्द करते हैं?” इस पर बाडीलालजीने कहा कि, "सरकारी नौकरोंको डरनेकी तो इसमें कोई बात नहीं है । मि० अजितप्रसादजी आदि कई सरकारी नौकरोंने इस कार्यमें प्रकटरूपसे योग दिया है, यह सब जानते हैं । इसके सिवाय जब आरा और देह - ली - केस के फैसले हो चुके हैं और उनपरसे जब हमें कानून जाननेवाले विश्वास दिलाते हैं कि सेठीजी पर कोई भी अपराध साबित नहीं हो सकता है, तब, एक जैनकी दृष्टिसे नहीं तो एक मनुष्यकी ही दृष्टिसे और ब्रिटिश राज्यकी कीर्ति बढ़ानेके लिए, ‘ सेठीजीका मुकद्दमा चलाया जाय और अपराध हो तो उन्हें उचित दण्ड दिया जाय, नहीं तो वे छोड़ दिये जायँ' सरकारसे केवल इतनी सी प्रार्थना करनेका प्रस्ताव करना तो कुछ अनुचित नहीं है । और यदि अनुचित ही है, तो इसका विचार पहले ही हो जाना था । सभापति महाशय इस प्रस्तावके पहले हीसे जानकार थे । उन्होंने उसी समय इसे रद Jain Education International ६९ करेनकी सम्मति क्यों न दी, अथवा यही क्यों न कह दिया कि यदि तुम्हें प्रस्ताव पेश करना हो तो दूसरा सभापति ढूँढ़ लो ? बम्बई जैसे जैनोंसे भरे हुए शहरमें यह तो कहा ही नहीं जा सकता कि मण्डलके सभापति होने के योग्य कोई पुरुष मिलता ही नहीं । यदि इस बातका इशारा पहले ही कर दिया गया होता, तो यह बात इतनी बढ़ती ही नहीं; पर ख़ैर अब भी एक उपाय है जिससे सारी कठिनाईयाँ दूर हो सकती हैं । कलकी बैठक में अन्य सब प्रस्तावोंके पास हो चुकने पर सभापति महाशय सभास्थान छोड़कर चले जावें और हम लोग दूसरे सभापतिको नियत करके सेठजीके प्रस्तावको पास कर डालें । ” यह उपाय सारी कमेटीको पसन्द आ गया; परन्तु सभापति महाशयने इसे नहीं माना, वे उसी समय स्तीफा देनेके लिए तैयार हो गये । उन्होंने सोचा मेरी इस धमकीसे शान्तिप्रिय जैन दब जायँगे और मुझे अपना पद त्याग करना न पड़ेगा । इस पर बड़ा शोरो गुल मचा, निदान श्रीयुत बाडीलालजीने दरख्वास्त पेश की कि इस विषयमें सब लोगों के बोट लिये जायँ । बोट लिये गये जिनमें ३५ मत सेठीजीका प्रस्ताव पेश करनेके अनुकूल और ६ विरुद्ध रहे और तब सभापतिको अपना पद छोड़ देना पड़ा ! इसके बाद जो हुआ वह शायद अशिक्षितों की सभामें होता तो भी निन्दनीय समझा जाता ! बाडीलालजीने अपनी दरख्वास्त वापस नहीं ली, तो भी एक महाशय की प्रार्थनासे जिन्होंने कि सेठजीके अनुकूल बोट दिया था - मि० खुशालदास फिर अपने छोड़े हुए पद पर आ बैठे और उन्होंने सेठीजीके प्रस्तावकी अपनी निर्दय कलमसे हत्या कर डाली ! लोग देखते ही रह गये 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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