Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 01
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 42
________________ TRAILERY ३२ IITR जैनहितैषी वमें सीसे और लोहेके बीच जो आकर्षण कि प्रत्येक वस्तु प्रत्येक दूसरी वस्तुको अपनी .. है उसका चौगुना हो जायगा। क्योंकि प्रथम ओर खींचती है; पृथ्वीहीमें कोई विलक्षबार लोहेका वास्तविक भार तो कम और णता नहीं। बाँटोंका अधिक था, अंतर लोहे और सीसेके मा०-वास्तवमें यही बात है । इस नियआकर्षणसे द्विगुण था और अंतिम अंतर मके आविष्कर्ता महात्मा न्यूटनने इसे यों इसका भी द्विगुण । लिखा है-" संसारका प्रत्येक परमाणु प्रत्येक मा०-बहुत ठीक । देखा न बातकी बातमें दूसरे परमाणुको अपनी ओर खींचता है।" चौगुणा करके नाप लिया। वैसे तो सीधा इसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं । इतना उपाय यह था कि साधारण तराजूके एक जानकर वे चुप हो जाते यह उनके स्वभा. पलडेमें बाँट रखते और एकमें लोहेका टुकड़ा- वके विरुद्ध था। उन्होंने इस सम्बंधी और बराबर करके लोहेवाले पलड़ेके नीचे सीसा भी नियम जान लिये और उन नियमोंद्वारा रख देते, परन्तु ऐसा करनेसे अंतर इतना चंद्रमा तारे इत्यादिका आकाशमें विना सहारे थोड़ा होता कि ऐसे तराजूसे नहीं नापा स्थित रहना, नियत मार्गमें भ्रमण करना जा सकता था। इत्यादि ज्योतिषसम्बंधी अनेक बातोंका पता वि०-क्या ऐसा कोई तराजू नहीं बनाया लगा लिया और आज उनके दिये हुए गया जिससे इसे भी नाप ले ? हिसाब अक्षरशः सत्य प्रमाणित होकर जन मा०-क्यों नहीं ? अब तो ऐसा अच्छा समाजको बहुत लाभ पहुंचा रहे हैं। जिस तराजू बन गया है कि जिसमें इतने बड़े प्रकार तुम्हें पैंसिल गिरने पर आश्चर्य हुआ सीसेके टुकड़ेकी भी आवश्यकता नहीं होती। उस ही प्रकार उन्हें वृक्ष परसे सेव गिरते बहत छोटे छोटे टुकड़ोंका आकर्षण भी नापा देख आश्चर्य हुआ था, परन्तु अंतमें उस जास -~-~~n छोटीसी बात हो जित पारागुननि वि०-वह तो बहुत आश्चर्यजनक तराजू रात देखते आते थे-उन्होंने ऐसे विश्वव्यापी होगा । हाँ, इससे तो यह प्रमाणित हो गया नियमका आविष्कार कर डाला । and annasasanay कलम कहे कानमें। ( कवि, श्रीयुत पं० गिरिधर शर्मा । Konsuunasosuusas जड़से उखाड़के सुखाय डालें मोहि, मेरे स्याही माहिं बोर बोर करें मुख कारो मेरो, 'प्राण घोट डालें धर धुआँके मकानमें। ___करों मैं उजारो तो हू ज्ञानके जहानमें । मेरी गाँठ काटें मोहि चाकूसे तराश डारें, परे हू पराये हाथ तजौं न परोपकार, . अंतरमें चीर डारें धरें नहीं ध्यानमें ॥ चाहे घिस जाऊँयों कलम कहे कानमें ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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