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SARITALIRALAAAAAAAAAAAAAEET . जैनसिद्धान्तभास्कर ।
उल्लेख किया है और उसका यह निष्कर्ष निकाला जिनसेनस्वामीने पाश्वर्वाभ्युदय काव्यकी है कि कालिदासके समयके सम्बन्धमें जब रचना अमोघवर्ष प्रथमके समयमें की है और विद्वानोंकी इस तरह भिन्नभिन्न कल्पनायें हैं, अमोघवर्षका राज्यकाल शक संवत् ७३७ या तब हमारी कल्पना निर्मूल क्यों ? यहाँ हम यह ईस्वीसन् ८१५ से आरंभ होता है। अतः पाश्र्वाभी कह देना चाहते हैं कि उक्त ३४ मतोंमें भ्युदय ८१५ से पहलेका नहीं हो सकता । इस 'मत' कहने योग्य तो दो चार ही हैं, शेष बातको भास्करसम्पादक भी मानते हैं। अब सब उनके अनुवादक, अनुधावक अथवा उन्हींकी इसके साथ कालिदासके समयको मिलाइए। बातंको प्रकारान्तरसे कहनेवाले हैं । कुछ लोग १ यदि विक्रमको छठी शताब्दिमें ही मानें, तो भास्करसम्पादकके समान ऊँटपटाँग हाँक- भी उनकी सभाका रत्न कलिदास दो सौ वर्षके नेवाले भी हैं! आपने ऐसे लोगोंके भी मत दे बाद अमोघवर्षकी सभामें उपस्थित नहीं हो डाले हैं जो कालिदासको भोजप्रबन्धके सकता। आधारसे ग्यारहवीं शताब्दिका कवि मानते हैं ! दें क्यों नहीं, मतोंकी संख्या अधिक
२ बीजापुर जिलेके आयहोली ग्रामके जैनदिखलाकर लोगोंकोभय ही तो दिखाना है; परन्तु
मंदिरमें जो जैन रविकीर्तिका शिलालेख है, यह मालूम न हुआ कि कालिदासके समयके विषयमें वह शक संवत् ५५६ या ईस्वी सन् ६३४ का मतान्तर दिखलानेसे कालिदास और जिनसेन
लिखा हुआ है और इसमें किसीको सन्देह भी की समकालीनता कैसे सिद्ध हो गई ! १०-११
नहीं है। ये रविकीर्ति अपनेको कालिदास पेज रंग डाले; पर यह एक जगह भी नहीं .
और भारविके समान कीर्तिशाली कवि बतलाते लिखा कि उक्त दोनों विद्वानोंका समय एक कैसे हैं -'स जयति कविरविकीर्तिः कविताहो सकता है। पहली किरणमें आपने प्रतिज्ञा श्रितकालिदासभारविकीर्तिः'। इससे सिद्ध की थी कि “ अगामी किरणमें हम दोनोंकी है कि कालिदास ईस्वी सन् ६३४ से भी समकालीनता पूरे प्रमाणके साथ सिद्ध करेंगे, पहले हो चुके थे, अतः उनके साथ जिनसे( पृष्ठ ४६)। परन्तु इस लेखमें तो वे परे नका साक्षात् कदापि नहीं हो सकता । प्रमाण पेश नहीं किये गये । इसके बाद चौथी ३ बाणभट्टने अपने प्रसिद्ध ऐतिहासिक किरण भी निकल गई , परन्तु उसमें भी नदा- काव्य हर्षचरितमें कालिदासका उल्लेख किया है रद । सच तो यह है कि न समकालीनता सिद्ध और बाणभट्टका समय ईसाकी छही शताब्दिका हो सकती है और न आप कर सकते हैं । कुछ अन्त और सातवींका प्रारंभ माना जाता है। लोग ऐसे पुरुषार्थी होते हैं जो अपनी असत्य इस विषयमें किसीका मतभेद भी नहीं है । अतः कल्पना पर भी अपनी योग्यताकी जिला चढ़ाकर कालिदासका समय छठी शताब्दिसे पहले निकुछ समयके लिए सत्यके सदृश दिखला देते विवाद है जो जिनसेन स्वामीसे कई सौ वर्ष हैं; परन्तु अफसोस है कि आप यह भी नहीं पहले चला जाता है। कर सकते हैं ! साथ ही बड़े ही दुःखकी बात यह ४ यह ठीक है कि कालिदास नामके कई है कि आप अपने भ्रमको स्वीकार करनेकी भी कवि हो गये हैं; परन्तु मेघदूतके कर्ता कालिशक्तिको खो बैठे हैं !
दासका समय तो छठी शताब्दिके बाद जाही
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