Book Title: Jain Dharma ki Aetihasik Vikas Yatra Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith ShajapurPage 14
________________ धानता प्रवर्तक धर्म १. जैविक मूल्यों की प्रधानता २. विधायक जीवन-दृष्टि ३. समष्टिवादी ४. व्यवहार में कर्म पर बल फिर भी दैविक शक्तियों की कृपा पर विश्वास ५. ईश्वरवादी ६. ईश्वरीय कृपा पर विश्वास ७. साधना के बाह्य साधनों पर बल ८. जीवन का लक्ष्य स्वर्ग/ईश्वर के सानिध्य की प्राप्ति ९. वर्ण-व्यवस्था और जातिवाद का जन्मना आधार पर समर्थन १०. गृहस्थ-जीवन की प्रधानता ११. सामाजिक जीवन शैली १२. राजतन्त्र का समर्थन १३. शक्तिशाली की पूजा १४. विधि विधानों एवं कर्मकाण्डों की प्रधानता। १५. ब्राह्मण-संस्था (पुरोहित-वर्ग) का विकास १६. उपासनामूलक निवर्तक धर्म १. आध्यात्मिक मूल्यों की प्रधानता। २. निषेधक जीवन-दृष्टि। ३. व्यष्टिवादी ४. व्यवहार में नैषकर्मण्यता का समर्थन फिर आत्मकल्याण हेतु वैयक्तिक पुरुषार्थ पर बल। ५. अनीश्वरवादी। ६. वैयक्तिक प्रयासों पर विश्वास, कर्म सिद्धांत का समर्थन। ७. आन्तरिक विशुद्धता पर बल। ८. जीवन का मोक्ष एवं निवार्ण की प्राप्ति। ९. जातिवाद का विरोध, वर्ण-व्यवस्था का केवल कर्मणा आधार पर समर्थन। १०. संन्यास जीवन की प्रधानता। ११. एकाकी जीवन शैली १२. जनतन्त्र का समर्थन। १३. सदाचारी की पूजा। १४. ध्यान और तप की प्रधानता। १५. श्रमण-संस्था का विकास। १६. समाधिमूलक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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