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पुनः प्रतिष्ठा की। बनारसीदास की परम्परा जहाँ दिगम्बर तेरापंथ के नाम से विकसित हुई, वही तारणस्वामी का वह आन्दोलन तारणपंथ या समैया के नाम से पहचाना जाने लगा। तारणतंथ के चैत्यालयों में मूर्ति के स्थापन पर शास्त्र की प्रतिष्ठा की गई। इस प्रकार सोलहवीं शताब्दी में जैन परम्परा में इस्लाम धर्म के प्रभाव के फलस्वरूप एक नया परिवर्तन आया और अमूर्तिपूजक सम्प्रदायों का जन्म हुआ फिर भी पुरानी परम्पराएँ यथावत चलती रही।
एक ओर अध्यात्म साधना, जो श्रमण संस्कृति की प्राण थी वह तत्कालीन यतियों के जीवन में कहीं भी दिखाई नहीं पड़ रही थी। धर्म कर्मकाण्ड से इतना बोझल बन गया था कि उसकी अन्तरात्मा दब- सी गई थी। धर्म का सहज, स्वाभाविक स्वरूप विलुप्त हो रहा था और उसके स्थान पर धार्मिक कर्णकाण्डों के रूप में धर्म पर सम्पत्तिशाली लोगों का वर्चस्र बढ़ रहा था। धर्म के नाम पर केवल ऐहिक हितों की सिद्धि
ही प्रयत्न हो रहे थे। दूसरी ओर इस्लाम के देश में सुस्थापित होने के परिणामस्वरूप एक आडम्बर विहीन सरल और सहज धर्म का परिचय जनसाधारण को प्राप्त हुआ । तीसरी ओर मन्दिर और मूर्ति जिस पर उस समय का धर्म अधिष्ठित था, मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा ध्वस्त किये जा रहे थे। ऐसी स्थिति में जनसाधारण को एक अध्यात्मपूर्ण, तप और त्यागमय, सरल, स्वाभाविक, आडम्बर और कर्मकाण्ड विहीन धर्म की अपेक्षा थी, जो मुस्लिम आक्रान्ताओं के द्वारा ध्वस्त उसके श्रद्धा केन्द्रों से उद्वेलित उसकी आत्मा को सम्यक आधार दे सकें।
अमूर्तिपूजक परम्पराओं का उद्धव
विक्रम की प्रथम सहस्त्राब्दी पूर्ण होते-होते इस देश पर मुस्लिम आक्रमण प्रारम्भ हो चुका था। उस समय मुस्लिम आक्रान्ताओं का लक्ष्य मात्र भारत से धन-सम्पदा को लूटकर ले जाना था, किन्तु धीरे-धीरे भारत की सम्पदा और उसकी उर्वर भूमि उनके आकर्षण का केन्द्र बनी और उन्होंने अपनी सत्ता को यहाँ स्थापित करने का प्रयत्न किया। सत्ता के स्थापना के साथ ही इस्लाम ने भी इस देश की मिट्टी पर अपने पैर जमाने प्रारम्भ कर दिये थे। यद्यपि मुस्लिम शासक भी एक-दूसरे को उखाड़ने में लगे हुए थे। एक ओर हुमायूँ और शेरशाह सूरि का संघर्ष चल रहा था, तो दूसरी ओर दिल्ली में मुस्लिम शासकों के वर्चस्व के कारण इस्लाम अपने पैर इस धरती पर जमा रहा था। मुस्लिम शासकों का लक्ष्य भी सत्ता और सम्पत्ति के साथ-साथ अपने धर्म की स्थापना बन गया था, क्योंकि वे जानते थे कि उनकी सल्तनत तभी कायम रह सकती है जब
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