________________
दोनों संघों की आंशिक निकटता का भी सूचक है। निर्ग्रन्थ परम्परा में महावीर के जीवनकाल में हुए संघ-भेद
__महाधीर के जीवनकाल में निर्ग्रन्थ संघ की अन्य महत्त्वपूर्ण घटना महावीर के जामातृ कहे जाने वाले जामालि से उनका वैचारिक मतभेद होना और जामालि का अपने पाँच सौ शिष्यों सहित उनके संघ से अलग होना है। 'भगवती', 'आवश्यकनियुक्ति' और परवर्ती ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में विस्तृत विवरण उपलब्ध है। निर्ग्रन्थ संघ-भेद की इस घटना के अतिरिक्त हमें बौद्ध पिटक साहित्य में एक अन्य घटना का उल्लेख भी मिलता है। जिसके अनुसार महावीर के निर्वाण होते ही उनके भिक्षुओं एवं श्वेत वस्त्रधारी श्रावकों में तीव्र विवाद उत्पन्न हो गया। निर्ग्रन्थ संघ के इस विवाद की सूचना बुद्ध तक भी पहुँचती है। किन्तु पिटक साहित्यक में इस विवाद के कारण क्या थे, उसकी कोई चर्चा नही हैं। एक सम्भावना यह हो सकती है कि यह विवाद महावीर के उत्तराधिकारी के प्रश्न को लेकर हुआ होगा। श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में महावीर के प्रथ उत्तराधिकारी को लेकर मतभेद है। दिगम्बर परम्परा महावीर के पश्चात् गौतम को पट्टधर मानती है, जबकि श्वेताम्बर परम्परा सुधर्मा को। श्वेताम्बर परम्परा में महावीर के निर्वाण के समय गौतम को निकट के दूसरे ग्राम में किसी देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने हेतु भेजने की जो घटना वर्णित है, वह भी इस प्रसंग में विचारणीय हो सकती है। किन्तु दूसरी सम्भावना यह भी हो सकती है कि बौद्धों ने जैनों के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्बन्धी परवर्ती विवाद को पिटकों के सम्पादन के समय महावीर के निर्वाण की घटना के साथ जोड़ दिया हो। मेरी दृष्टि में यदि ऐसा कोई विवाद घटित हुआ होगा तो वह महावीर के अचेल एवं सचेल श्रमणों के बीच हुआ होगा, क्योंकि पार्थापत्यों के महावीर के निर्ग्रन्थ संघ में प्रवेश के साथ ही उनके संघ में नग्न और सवस्त्र ऐसे दो वर्ग अवश्य ही बन गये होंगे और महावीर ने श्रमणों के इन दो वर्गों को सामायिक-चारित्र और छेदोपसापनीय-चरित्रधारी के रूप में विभाजित किया होगा। विवाद का कारण ये दोनों वर्ग ही रहे होंगे। मेरी दृष्टि में बौद्ध परम्परा में जिन्हें श्वेता वस्त्रधारी श्रावक कहा गया, वे वस्तुतः सवस्त्र श्रमण ही होंगे, क्योंकि बौद्ध परम्परा में श्रमण (भिक्ष) को भी श्रावक कहा जाता है, फिर भी इस सम्बन्ध में गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता है। महावीर के निर्ग्रन्थ संघ की धर्म प्रसार-यात्रा
भगवान् महावीर के काल में उनके निर्ग्रन्थ संघ का प्रभाव-क्षेत्र बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा उनके आसपास का प्रदेश ही था। किन्तु महावीर के निर्वाण के पश्चात् इन सीमाओं में विस्तार होता गया। फिर भी आगमों और नियुक्तियों की रचना तथा
28
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org