Book Title: Jain Dharma aur Tantrik Sadhna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 11
________________ viii के अर्थों की तुलना में "तंत्र' शब्द के अर्थों में बड़ी विविधता है। आप्टे के शब्दकोश में "मंत्र" शब्द के चार अर्थ (वेद मंत्र, सामान्य मंत्र, गुप्त सलाह, भूत-प्रेम शमन कला) दिये हैं। "यंत्र' शब्द के सात (नियंत्रण, वशीकरण, संयमन, बंधन ताबीज, मशीनें आदि) और "तंत्र" शब्द के सत्ताइस अर्थ दिये हैं। हिन्दी विश्वकोश-६ (१६८६ पेज २१२–६३) में तो "तंत्र" शब्द के अड़तीस अर्थ दिये हैं। इनसे "तंत्र" शब्द की व्यापकता का अनुमान लगता है। इनमें से हमारे विचार के लिये कुछ ही अर्थ उपयुक्त हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि "तंत्र" शब्द के अर्थों में क्रमशः संकोच और बाद में रूढ़िगतता आई है। प्रारंभ में यह शब्द किसी भी विलगित पद्धति, सिद्धांत या शास्त्र के अर्थ में प्रयुक्त हुआ (उदाहरणार्थ, न्यायदर्शन १.१.२७ में चार तंत्र बताये हैं)। फिर यह विशिष्ट विद्याओं- भूत-प्रेत, झाड़-फूंक आदि के लिये प्रयुक्त हुआ, फिर अध्यात्मीकरण के युग में शिवोक्त शास्त्र एवं दैवीशक्तियों को प्राप्त करने के लिये कायिक अनुष्ठान विशेषों के संग्रह के रूप में प्रयुक्त हुआ। वर्तमान में अनेक जैनेतर पद्धतियों में यह अंतिम अर्थ ही अभिप्रेत है। यह प्रवृत्तिमार्गी पद्धति है। जैन निवृत्तिमार्गी हैं, अत: उन्हें यह अर्थ अभीष्ट नहीं है। "तंत्र के समान "यंत्र" शब्द भी नियमनार्थ प्रयुक्त होता है। यह नियमन भूत-प्रेतों सांसारिक क्लेशों का भी हो सकता है और मन का भी हो सकता है। यह यंत्र विशिष्ट प्रकार के रहस्यमय, ज्योतिर्मय एवं ज्यामितीय आरेख होते हैं जिनमें विशिष्ट अक्षर, शब्द या मंत्र वाक्य होते हैं। ऐसा माना जाता है कि मंत्राधिष्ठित यंत्र बड़ा शक्तिशाली होता है। जैन मूर्ति प्रतिष्ठाओं में मूर्तिओं में मंत्र-न्यास किया जाता है। इसीलिये उनमें पूजनीयता एवं चमत्कारिकता आती है और मूर्ति तांत्रिक हो जाती है। सामान्यतः "मंत्र जप" को ध्यान का ही एक रूप माना जाता है। इसमें मनः केन्द्रण द्वारा आन्तरिक शक्ति, संकल्पशक्ति एवं आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। यह जप में उच्चारित ध्वनियों के अन्योन्य आघात से उत्पन्न होती है। इसीलिये "मंत्र" की अनेक परिभाषाओं में "मन का संधारण, मनन एवं त्राण' मुख्य हैं। प्राचीनकाल में पुराण कथाओं के माध्यम से तथा वर्तमान में अनेक घटनाओं के प्रत्यक्षीकरण से मंत्रशक्ति की क्षमता एवं उसके माध्यम से परहित-निरतता एवं आत्मिक विकास के प्रति निष्ठा निरन्तर वर्धमान है। "मंत्र" शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ जो भी हो पर इस शब्द से विशिष्टि ध्वनि समुदायों का अल्पाक्षरी पद-समूह लिया जाता है। इसमें मात्रिकाक्षर (अ-क्ष तक बीजाक्षर (क-ह तक) और पल्लव (नमः, स्वाहा, फट आदि) तीन अंग होते हैं। प्रत्येक अक्षर की विशिष्ट सामर्थ्य होती है। इसके आधार पर मंत्रों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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