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प्रचौर्य
१. अदत्तादाणं, अणज्ज अकित्तिकरण""सया साहुगरहणिज्ज ।
____-प्रश्नध्याकरण ११३ अदत्तादान (चोरी) ससार मे अपयश बढ़ानेवाला अनार्य कर्म है।
यह सभी भले आदमियों द्वारा निदनीय है। २. दन्तसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं ।
-उत्तराध्ययन सूत्र १९।२८ अस्तेय (अचौर्य) व्रत का साधक बिना किसी (स्वामी) की अनुमति के, और तो क्या, दात साफ करने के लिये एक तिनका भी नही लेता। लोभाविले आययई अदत्तं ।
- उत्तराध्ययन सूत्र ३२।२६ जब आत्मा लोभ से कलुषित होता है तो चोरी करने को प्रवृत्त होता है । अर्थात् चोरी का प्रेरक लोभ है । ४. अनिष्टादप्यनिष्टं च अदत्तमपलक्षणे ।
-हिंगुलप्रकरण चोरी करना सबसे निकृष्ट कुलक्षण है। ५. दौर्भाग्यं च दरिद्रत्व लभते चौर्यतो नरः ।
-उपदेशप्रासाद, भाग १ चोरी करने से मनुष्य दौर्भाग्य और दरिद्रता को प्राप्त होता है ।
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