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सम्यग्दर्शन
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जो सम्यग्दर्शन मे भ्रष्ट है, वस्तुत वही भ्रष्ट है, पतित है, क्योंकि दर्शन से भ्रष्ट को मोक्ष प्राप्त नही होता ।
दविए दंसणसुद्धी दंसणसुद्धस्स चरणं तु ।
- ओघनियुक्तिभाष्य ७
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द्रव्यानुयोग (तत्वज्ञान) से दर्शन ( दृष्टि ) शुद्ध होता है और दर्शन शुद्धि होने पर चारित्र की प्राप्ति होती है ।
- भगवती आराधना ७४२
सम्म सणलंभो वर ख तेलोवक्लभादो । खु सम्यग्दर्शन की प्राप्ति तीन लोक के ऐश्वर्य मे भी श्रेष्ठ है । स्थैर्य प्रभावना भक्तिः कौशलं जिनशासने । तीर्थसेवा च पञ्चापि भूषणानि प्रचक्षते ॥
- योगशास्त्र २।१६
(१) धर्म मे स्थिरता, (२) धर्म की प्रभावना -- व्याख्यानादि द्वारा (३) जिनशासन की भक्ति, (४) कुशलता - अज्ञानियों को धर्म समझाने मे निपुणता, (५) चार तीर्थ की सेवा - ये पाच सम्यक्त्व के भूपण है ।