Book Title: Jain Dharm ki Hajar Shikshaye
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 258
________________ २२४ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वईसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। -उत्तराध्ययन २५॥३३ कर्म से ही ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय । कर्म से ही वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र । ५. पन्नाणेहिं परियाणह लोयं मुणी ति बच्चे । -आचारांग १।३।१ जो अपने प्रज्ञान (बुद्धि-ज्ञान) से संसार के स्वरूप को जानता है, वह मुनि कहलाता है।

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