Book Title: Jain Dharm ki Hajar Shikshaye
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 261
________________ गुच्छक २२७ एगे अट्ठकरे वि माणकरे वि । एगे णो अट्ठकरे, णो माणकरे । -स्थानांग ४॥३ कुछ व्यक्ति सेवा आदि महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं, किन्तु उसका अभिमान नहीं करते। कुछ अभिमान करते हैं, किन्तु कार्य नहीं करते । कुछ कार्य भी करते हैं, अभिमान भी करते हैं। कुछ न कार्य करते है, न अभिमान ही करते हैं। अप्पणो णामं एगे पत्तियं करेइ, णो परस्स । परस्स णामं एगे पत्तियं करेइ, णो अप्पणो । एगे अप्पणो पत्तियं करेइ, परस्सवि । एगे णो अप्पणो पत्तियं करेइ, णो परस्स । -स्थानांग ४३ कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जो सिर्फ अपना ही भला चाहते हैं, दूसरों का नहीं। कुछ उदार व्यक्ति अपना भला चाहे बिना भी दूसरों का भला करते हैं। कुछ अपना भला भी करते हैं और दूसरों का भी । और कुछ न अपना भला करते हैं, न दूसरों का । गज्जित्ता णामं एगे णो वासित्ता। वासित्ता णामं एगे णो गज्जित्ता । एगे गज्जित्ता वि वासित्ता वि । एगे णो गज्जित्ता, णो वासित्ता । स्थानांग ४३

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