Book Title: Jain Dharm ki Hajar Shikshaye
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 253
________________ तत्वदर्शन १४ १५ १६ १७ १८ नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेते वि पएसे । जत्थं णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि ॥ -भगवती १२/७ २१६ इस विराट् विश्व में परमाणु जितना भी ऐसा कोई प्रदेश नही है, जहाँ यह जीव न जन्मा हो न मरा हो । अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे । -भगवती १७१५ आत्मा का दुःख स्वकृत है, अपना किया हुआ है, परकृत अर्थात् किसी अन्य का किया हुआ नही है । महदुक्खसंपओगो, न विज्जई निच्चवायपक्खमि । एगंतुच्छेअमिय, सुहदुक्खविगप्पणमजुत्तं ॥ - दशर्वकालिक नियुक्ति ६० एकान्त नित्यवाद के अनुसार सुख-दुख का सयोग सगत नही बैठता और एकान्त उच्छेदवाद - अनिन्यवाद के अनुसार भी सुखदुख की बात उपयुक्त नही होती । अत नित्यानित्यवाद ही इसका मही समाधान कर सकता है । दव्वं सलक्खणयं, उप्पादव्वयधुवत्त संजुत्तं । - पचास्तिकाय १० द्रव्य का लक्षण सत् है, और वह सदा उत्पाद, व्यय एव ध वत्त्वभाव मे युक्त होता है । दव्वेण विणा न गणा, गणेहि दव्वं विणा न संभवदि । - पंचास्तिकाय १३ द्रव्य के विना गुण नही होते है, और गुण के बिना द्रव्य नही होते ।

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