Book Title: Jain Dharm ki Hajar Shikshaye
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 254
________________ २१ २२० जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ १६ भावस्स णत्थि णासो, णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो। -पंचास्तिकाय १५ भाव (सत्) का कभी नाश नहीं होता, और अभाव (असत) का कभी उत्पाद (जन्म) नहीं होता। सव्वं चि य पइसमयं उप्पज्जइ नासए य निच्चं च । -विशेषावश्यकभाष्य ५४४ विश्व का प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण उत्पन्न भी होता है, नष्ट भी होता है, साथ ही नित्य भी रहता है । उप्पज्जति वियंति य, भावा नियमेण पज्जवनयस्स । दव्वट्ठियस्स सव्वं, सया अणुप्पन्नमविणठें ।। _ --सन्मतितर्क १११ पर्यायदृष्टि से सभी पदार्थ नियमेन उत्पन्न भी होते हैं और नष्ट भी । परन्तु द्रव्यदृष्टि से सभी पदार्थ उत्पत्ति और विनाश से रहित सदाकाल ध्रव हैं। २२ दव्वं पज्जवविउयं, दवविउत्ता य पज्जवा णत्थि । उप्पायट्ठइ-भंगा, हंदि, दविय लक्खणं एयं ।। सन्मतितर्क १११२ द्रव्य कभी पर्याय के बिना नहीं होता, और पर्याय कभी द्रव्य के बिना नहीं होता । अत: द्रव्य का लक्षण उत्पाद, नाश और ध्रुव (स्थिति) रूप है। २३ तम्हा सव्वे वि णया, मिच्छादिटठी सपक्खपडिबद्धा। अण्णोण्णणिस्सिया उ ण, हवन्ति सम्मत्तसन्भावा । -सन्मतितर्क २२१

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