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तत्वदर्शन
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नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेते वि पएसे । जत्थं णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि ॥ -भगवती १२/७
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इस विराट् विश्व में परमाणु जितना भी ऐसा कोई प्रदेश नही है, जहाँ यह जीव न जन्मा हो न मरा हो ।
अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे ।
-भगवती १७१५
आत्मा का दुःख स्वकृत है, अपना किया हुआ है, परकृत अर्थात् किसी अन्य का किया हुआ नही है ।
महदुक्खसंपओगो,
न विज्जई निच्चवायपक्खमि । एगंतुच्छेअमिय, सुहदुक्खविगप्पणमजुत्तं ॥
- दशर्वकालिक नियुक्ति ६०
एकान्त नित्यवाद के अनुसार सुख-दुख का सयोग सगत नही बैठता और एकान्त उच्छेदवाद - अनिन्यवाद के अनुसार भी सुखदुख की बात उपयुक्त नही होती । अत नित्यानित्यवाद ही इसका मही समाधान कर सकता है ।
दव्वं सलक्खणयं, उप्पादव्वयधुवत्त संजुत्तं ।
- पचास्तिकाय १०
द्रव्य का लक्षण सत् है, और वह सदा उत्पाद, व्यय एव ध वत्त्वभाव मे युक्त होता है ।
दव्वेण विणा न गणा,
गणेहि दव्वं विणा न संभवदि ।
- पंचास्तिकाय १३
द्रव्य के विना गुण नही होते है, और गुण के बिना द्रव्य नही होते ।