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जैनधर्म की हजार शिक्षाएं परन्तु जो निष्काम होता है, वह न मृत्यु से ग्रस्त होता है, और न शाश्वत सुख से दूर । निष्कामता ही सुख व अमरता का
मार्ग है। ४. सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था।
-स्थानांग ६३१ भगवान ने, जीवन में सर्वत्र निष्कामता (अनिदानता) को श्रेष्ठ बताया है। कामे कमाही, कमियं खु दुक्खं ।
- दशवकालिक २१५ कामनाओं को दूर करना ही वास्तव में दुःखों को दूर करना है । ६. वंतं इच्छसि आवेउ, सेयं ते मरणं भवे ।।
-दशवकालिक २७ वमन किये हुये । त्यक्त विपयों) को फिर से पीना (पाना) चाहते
हो? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है। ७. इहलोए निप्पिवासस्स, नत्थि किंचि वि दुक्करं ।
-उत्तराध्ययन १९४५ जो व्यक्ति इस संसार की पिपासा-तृष्णा से रहित है, उसके लिए कुछ भी कठिन कार्य नहीं है।
कामाण गिद्धिप्पभवं खु दुक्खं । सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स ।।
-उत्तराध्ययन३२११६ मनुष्यों व देवताओं के इस समग्र-संसार में जो भी दुःख है, वे सब कामासक्ति के कारण ही उत्पन्न होते हैं । अर्थात् जिसकी कामा
सक्ति मिटगई उसे संसार में कहीं कुछ भी दु ख नहीं हैं। ६. कामनियत्तमई खलु, संसारा मुच्चई खिप्पं ।
-आचारांगनियुक्ति १७७