Book Title: Jain Dharm ki Hajar Shikshaye
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 249
________________ वीतरागता १७ १८ २१५ तह रायानिलरहिओ, झाणपईवो वि पज्जलई । - भावपाड १२३ हवा से रहित स्थान में जैसे दीपक निर्विघ्न जलता रहता है, वैसे ही राग की वायु से मुक्त रहकर ( आत्ममदिर में ) ध्यान का दीपक सदा प्रज्वलित रहता है । भोगेहि य निरवयक्खा, तरंति संसारकंतारं । -ज्ञाताधर्मकथा ११९ जो विषय-भोगों से निरपेक्ष रहते है, वे ससार-वन को पार कर जाते है ।

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