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वीतरागता
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तह रायानिलरहिओ, झाणपईवो वि पज्जलई ।
- भावपाड १२३ हवा से रहित स्थान में जैसे दीपक निर्विघ्न जलता रहता है, वैसे ही राग की वायु से मुक्त रहकर ( आत्ममदिर में ) ध्यान का दीपक सदा प्रज्वलित रहता है ।
भोगेहि य निरवयक्खा, तरंति संसारकंतारं ।
-ज्ञाताधर्मकथा ११९
जो विषय-भोगों से निरपेक्ष रहते है, वे ससार-वन को पार कर
जाते है ।