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जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ । जे सव्वं जाणइ, से एगं जाणइ ||
तत्त्वदर्शन
जे आसवा ते परिस्सवा,
जे परिस्सवा ते आसवा । जे अणासवा ते अपरिस्सवा जे अपरिस्सा ते अणासवा ||
जो एक को जानता है, वह सब को जानता है । और जो सब को
जानता है, वह एक को जानता है ।
- आचारांग १।३।४
असत् कभी सत् नहीं होता ।
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- आचारांग १।४।२
जो बन्धन के हेतु हैं, वे भी कभी मोक्ष के हेतु हो सकते हैं । और जो मोक्ष के हेतु हैं, वे भी कभी बन्धन के हेतु भी हो सकते हैं । जो व्रत, उपवास आदि संवर के हेतु हैं कभी-कभी संवर के हेतु नहीं भी हो सकते हैं। और जो आस्रव के हेतु हैं वे कभी-कभी आश्रव के हेतु नहीं भी हो सकते हैं-- अर्थात् आश्रव और संवर मूलतः साधक के अंतरंग भावों पर आधारित है ।
नो य उप्पज्जए
असं ।
- सूत्रकृतांग १|१|१|१६