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तत्त्वदर्शन
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जदत्थि णं लोगे, तं सव्वं दुअओआरं।
-स्थानांग २१
विश्व में जो कुछ भी है, वह इन दो शब्दों समाया हुआ हैहै-चेतन और जड।
ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं जीवा अजीवा भविस्संति, अजीवा वा जीवा भविस्संति ।
-स्थानांग १० न ऐसा कभी हुआ है, न होता है और न कभी होगा ही कि जो चेतन है-वे कभी अचेतन-जड़ हो जाएं और जो जड अचेतन वे चेतन हो जाएं।
अत्थित्त अत्थित्ते परिणमड, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ ।
-भगवती १३ अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है, अर्थात् सत् सदा सत् ही रहता है और असत, सदा असत् ।
अजीवा जीव पइट्ठिया, जीवा कम्म पइट्ठिया ।
-भगवती १२३ अजीव जड पदार्थ जीव के आधार पर रहे हुए है और जीव (संसारी प्राणी) कर्म के आधार पर रहे हुए है।
अथिरे पलोट्टइ नो थिरे पलोट्टइ ।
अथिरे भज्जइ, नो, थिरे भज्जइ ॥ अस्थिर बदलता है, स्थिर नहीं बदलता । अस्थिर टूट जाता है, स्थिर नही टूटता ।