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________________ १७८ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं परन्तु जो निष्काम होता है, वह न मृत्यु से ग्रस्त होता है, और न शाश्वत सुख से दूर । निष्कामता ही सुख व अमरता का मार्ग है। ४. सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था। -स्थानांग ६३१ भगवान ने, जीवन में सर्वत्र निष्कामता (अनिदानता) को श्रेष्ठ बताया है। कामे कमाही, कमियं खु दुक्खं । - दशवकालिक २१५ कामनाओं को दूर करना ही वास्तव में दुःखों को दूर करना है । ६. वंतं इच्छसि आवेउ, सेयं ते मरणं भवे ।। -दशवकालिक २७ वमन किये हुये । त्यक्त विपयों) को फिर से पीना (पाना) चाहते हो? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है। ७. इहलोए निप्पिवासस्स, नत्थि किंचि वि दुक्करं । -उत्तराध्ययन १९४५ जो व्यक्ति इस संसार की पिपासा-तृष्णा से रहित है, उसके लिए कुछ भी कठिन कार्य नहीं है। कामाण गिद्धिप्पभवं खु दुक्खं । सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स ।। -उत्तराध्ययन३२११६ मनुष्यों व देवताओं के इस समग्र-संसार में जो भी दुःख है, वे सब कामासक्ति के कारण ही उत्पन्न होते हैं । अर्थात् जिसकी कामा सक्ति मिटगई उसे संसार में कहीं कुछ भी दु ख नहीं हैं। ६. कामनियत्तमई खलु, संसारा मुच्चई खिप्पं । -आचारांगनियुक्ति १७७
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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