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अनासक्ति
आसं च छंदं च विगिच धीरे !
-आचारांग १।२।४ हे धीर पुरुष ! आशा-तृष्णा और स्वच्छन्दता का त्याग कर ।
जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कुओ सिया?
--आचारांग ११४४ जिसको न कुछ पहले है और न कुछ पीछे है, उसको बीच में कहां से होगा? [जिस साधक को न पूर्व भुक्तभोगों की स्मृति (आसक्ति) है,
और न भविष्य के भोगों की ही कोई कामना होती है, उसको वर्तमान में भोगासक्ति कैसे हो सकती है ?] ___ गुरु से कामा, तओ से मारस्स अंतो,
जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे। नेव से अंतो नेव दूरे ।
-आचारांग १११ जिसकी कामनायें तीव्र होती हैं, वह मृत्यु से ग्रस्त होता है और वह शाश्वत सुख से दूर रहता है।
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