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संयम
भोग समर्थ होते हुए भी जो भोगों का परित्याग करता है, वह कर्मों की महान निर्जरा करता है। उसे मुक्तिरूप महाफल प्राप्त
होता है। ५. अच्छंदा जे न भुजति, न से चाइत्ति वुच्चइ ।
- दशवकालिक २२२ जो पराधीनता के कारण विषयों का उपभोग नहीं कर पाते, उन्हें त्यागी नहीं कहा जा सकता।
जे य कते पिये भोए लद्धे वि पिट्ठिकुव्वइ । साहीणे वयइ भोए से हु चाइ त्ति वुच्चइ ।।
-दशवकालिक ॥३ जो मनोहर और प्रिय भोगों के उपलब्ध होने पर भी स्वाधीनता. पूर्वक उन्हें पीठ दिखा देता है-त्याग देता है, वस्तुतः वही त्यागी है। __ अप्पा हु खलु सययं रक्खिअव्वो।
-दशवकालिक २०१६ अपनी आत्मा को सतत पापों से बचाए रखना चाहिए । ८. जाउ अस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्सगामिणी॥
-उत्तराध्ययन २३१७१ छिद्रोंवाली नौका पार नहीं पहुंच सकती, किन्तु जिस नौका में छिद्र नहीं है वही पार पहुंच सकती है ।असंयम छिद्र है, उन छिद्रों को रोकना संयम है अर्थात् संयमी आत्मा ही संसार सागर को पार कर सकती है।
सरीरमाहु नाव त्ति, जीवो बुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो ।।
-उत्तराध्ययन २३१७३