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प्रात्म-विजय
१. पुरिमा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमुच्चसि ।
-आचारांग १।३।३ मानव ! अपने आपको ही निग्रह (सयत) कर। स्वय के निग्रह
(संयम) से ही तू दुःख से मुक्त हो सकता है। २. जे एगं नामे, से बहु नामे ।
--आचारांग १।३।४ जो अपने-आप को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार
को नमा लेता है। ३. इमेण चेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झण बज्झाओ।
-आचारांग ॥५॥३ अपने अन्तर (के विकारों) से ही युद्ध कर । बाहर के युद्ध से तुझे
क्या प्राप्त होगा? ४. जुद्धारिहं खलु दुल्लभं ।
-आचारांग ११५३ विकारों से युद्ध करने के लिए फिर यह अवसर (मानवजन्म) मिलना दुर्लभ है।
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