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________________ ११ . प्रचौर्य १. अदत्तादाणं, अणज्ज अकित्तिकरण""सया साहुगरहणिज्ज । ____-प्रश्नध्याकरण ११३ अदत्तादान (चोरी) ससार मे अपयश बढ़ानेवाला अनार्य कर्म है। यह सभी भले आदमियों द्वारा निदनीय है। २. दन्तसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं । -उत्तराध्ययन सूत्र १९।२८ अस्तेय (अचौर्य) व्रत का साधक बिना किसी (स्वामी) की अनुमति के, और तो क्या, दात साफ करने के लिये एक तिनका भी नही लेता। लोभाविले आययई अदत्तं । - उत्तराध्ययन सूत्र ३२।२६ जब आत्मा लोभ से कलुषित होता है तो चोरी करने को प्रवृत्त होता है । अर्थात् चोरी का प्रेरक लोभ है । ४. अनिष्टादप्यनिष्टं च अदत्तमपलक्षणे । -हिंगुलप्रकरण चोरी करना सबसे निकृष्ट कुलक्षण है। ५. दौर्भाग्यं च दरिद्रत्व लभते चौर्यतो नरः । -उपदेशप्रासाद, भाग १ चोरी करने से मनुष्य दौर्भाग्य और दरिद्रता को प्राप्त होता है । ४८
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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