Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottar Author(s): Jain Atmanand Sabha Publisher: Jain Atmanand Sabha View full book textPage 7
________________ रेली मदद माटे अमो तेनने धन्यवाद आपीए ये अने तेमां शेठ रवजोनाइ देवराजे खरीदेल बुको तमाम पोते पोता तरफथी वगर कीमते आपवाना होवाथी तेमना आवा स्तुती नरेला कार्यने माटे अमोने वधारे आनंद पाय . ____ ग्रंथनी शुश्ता अने निर्दोषता करवानी सा वधानी राख्या उतां कही कोई स्थले दृष्टी दोष. थी के प्रमादथो नूल येलो मालम प तो सुझ पुरुषो सुधारी वांचशो अने अमोने लखी जणा वशो तो तेननो उपकार मानोशु. संवत १९६३ ना ) समसामानंद मला फागण सुद ५ । श्री जैन याम्रानंद सना. रविवार हेहीरोड. ) जावनगर, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 270