Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottar Author(s): Jain Atmanand Sabha Publisher: Jain Atmanand Sabha View full book textPage 5
________________ सांप्रत काले विद्यमान नथो तेने माटे अतुल खेद प्राप्त थशे. बैवटे अमारे आनंद सहित जणाववुं पबे के मरहम पूज्यपादना हृदयमां अनगार धर्मनी साथै परोपकारपणानी पवित्र बाया जे पमी हतो ते बाया तेमना परिवार मंगलना हृदयमां उतरी बे. पोताना गुरुनुं यथाशक्ति अनुकरण करवाने ते शिष्य वर्ग त्रिकरण शुद्धिश्री प्रवर्त्त बे तेनी साधे विद्या, ऐक्यता स्वार्पण ने परोपकार बुद्धि तेमना शिष्य वर्गमां प्रत्यक्ष मूर्तिमान जोवामां आवे छे अने तेन परम सात्विक होइ सर्वने तेबांज देखे बे ने तेवाज करवा इबे वे अने तेननुं जीवन गुरु जक्तिमय बे आवा केटलाक गुसोने लइने आवा महान ग्रंथोने प्रसिद्धीमां लावी जैन समुहमां मूकी जैनधर्मनुं अजवालु पामवा आ ग्रंथनो आवृतो करवानो समय प्राच्यो ठें जो के या ग्रंथनी प्रथम आवृती आजथो अठार वर्ष नपर संबत १९९४५ नी सालमां मरहम गुरुराज नी समतोथो राजेश्री गीरधरलाल हीरानाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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