Book Title: Jain Dharm Vishayak Prashnottar
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 4
________________ लेखको अने सामान्य लोको उपर जे असर करे ने तेज तेनी नपयोगिता दर्शाववाने बत ने. ... जैनधर्म अनादि कालथीज , अने ते बौ धर्मयो तदन अलग अने पेहेलाथीज , ते ते मज जैनमतना पुस्तकोनी नुत्पत्ति-कर्मनुं स्व. रूप-जीनप्रतिमानी पूजा करवानो तीर्थकरोए करेलो नपदेश विगेरे बीजो केट लीक नपयोगी वाबतोनो आ ग्रंथमा समावेश करेला डे. वर्तमान कालमा व्यवहारिक केलवणी ली धेला युवको जेने जैनधर्मनु तत्व शुं तेनाथी अजाणतेनने तेमज अन्य धर्मीनने आ ग्रंथ आद्यंत वांचवाथी जैनधर्मनुं बुटु बटु स्वरुप केटलेक अंशे मालम पमे तेम . ___कोइपण निष्पक्षपातो तत्व जोज्ञासु पुरुष आ ग्रंथर्नु स्वरुप आद्यंत अवलोकशे तो एक जै नना महान् विक्षाने नारतवर्षनी जेन प्रजा न. पर आवा नत्तम ग्रंथो रची महद् उपकार कीधो . ते साये आ विज्ञान शिरोमणो महाशय पुरुष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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