Book Title: Jain Dharm Darshan Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust
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कोई साहित्य नहीं मिलता। किंतु पुरातत्त्व की खोजों और उत्खनन के परिणामस्वरूप कुछ नये तथ्यों पर प्रकाश पड़ता है। सन् 1922 में और उसके बाद मोहन-जोदड़ों और हड़प्पा की खुदाई भारत सरकार की ओर से की गई थी। इन स्थानों पर जो पुरातत्त्व उपलब्ध हुआ है, उससे तत्कालीन भारतवासियों के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज और धार्मिक विश्वासों पर प्रकाश पड़ता है। इन स्थानों पर यद्यपि कोई देवालय मंदिर नहीं मिले हैं, किंतु वहां पाई गई मुहरों, ताम्रपत्रों तथा पत्थर की मूर्तियों से उनके धर्म का पता चलता है। ___ 1. मोहन जोदड़ो में कुछ मुहरें ऐसी मिली हैं, जिन पर योगमुद्रा में योगी मूर्तियां अंकित है, एक मुहर ऐसी
भी प्राप्त हुई, जिसमें एक योगी कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानलीन है। ___ कायोत्सर्ग मुद्रा जैन परंपरा की ही विशेष देन है। मोहनजोदड़ों की खुदाई में प्राप्त मूर्तियों की यह विशेषता है कि वे प्रायः कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं, ध्यानलीन हैं और नग्न हैं। खड़े रहकर कायोत्सर्ग करने की पद्धति जैन पंरपरा में बहुत प्रचलित है।
धर्म परंपराओं में योग मुद्राओं में भी भेद होता है। पद्मासन एवं खड्गासन जैन मूर्तियों की विशेषता है। इसी संदर्भ में आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा - प्रभो! आपके पद्मासन और नासाग्र दृष्टि वाली योगमुद्रा को भी परतीर्थिंक नहीं सीख पाए हैं तो भला वे ओर क्या सीखेगें। प्रोफेसर प्राणनाथ ने मोहनजोदड़ों की एक मुद्रा पर 'जिनेश्वर' शब्द भी पढ़ा है।
2. मोहनजोदडों से प्राप्त मर्तियां तथा उनके उपासक के सिर पर नाग फण का अंकन है। वह नाग वंश का सचक है। सातवें तीर्थंकर भगवान सपाव के सिर पर सर्प-मण्डल का छत्र था। _इस प्रकार मोहनजोदड़ों और हडप्पा आदि में जो ध्यानस्थ प्रतिमायें मिली हैं, वे तीर्थंकरों की हैं। ध्यानमग्न वीतराग मुद्रा, त्रिशूल और धर्मचक्र, पशु, वृक्ष, नाग ये सभी जैन कला की अपनी विशेषताएं हैं। खुदाई में प्राप्त ये अवशेष निश्चित रूप से जैन धर्म की प्राचीनता को सिद्ध करते हैं। ____ 3. डेल्फी से प्राप्त प्राचीन आर्गिव मूर्ति, जो कायोत्सर्ग मुद्रा में है, ध्यानलीन है और उसके कंधों पर ऋषभ की भांति केश-राशि लटकी हुई है। डॉ. कालिदास नाग ने उसे जैन मूर्ति बतलाया है। वह लगभग दस हजार वर्ष पुरानी है। ___4. सिंधुघाटी सभ्यता का विवरण देते हुए विख्यात इतिहासकार डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी अपनी पुस्तक 'हिन्दू सभ्यता' में लिखते हैं कि उस समय के सिक्कों में ध्यानस्थ जैन मुनि अंकित है जो द्वितीय शताब्दी की मथुरा अजायबघर में संग्रहित ऋषभदेव की मूर्ति से मेल खाते हैं और मूर्तियों के नीचे बैल का चिन्ह मौजूद है। मोहनजोदड़ों की खुदाई में 'निर्ग्रन्थ' मूर्तियां पाई गई हैं और उसी तरह हडप्पा में भी। हिन्दू विश्वविद्यालय
शी के प्रोफेसर प्राणनाथ विद्यालंकार सिंधु घाटी में मिली कायोत्सर्ग प्रतिमाओं को ऋषभदेव की मानते हैं और उनका मत है कि उन्होंने तो सील क्रमांक 441 पर 'जिनेश' शब्द भी पढा है।
5. डॉ. हर्मन जेकोबी ने अपने ग्रंथ 'जैन सूत्रों की प्रस्तावना' में इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। आज पार्श्वनाथ जब पूर्णतः ऐतिहासिक सिद्ध हो चुके हैं तब भगवान महावीर से जैन धर्म का शुभारंभ मानना मिथ्या ही है। जेकोबी लिखते है - "इस बात से अब सब सहमत हैं कि नातपत्त जो वर्धमान अथवा महावीर प्रसिद्ध हुए, वे बुद्ध के समकालीन थे। बौद्ध ग्रंथों में मिलने वाले उल्लेख हमारे इस विचार को और दृढ करते हैं कि नातपुत्त से पहले भी निर्ग्रन्थों या आर्हतों का जो आज आहेत या जैन नाम से प्रसिद्ध हैं - अस्तित्व था।"
साहित्य के आधार पर :- (Literary Sources) भारतीय साहित्य में वेद सबसे प्राचीन माने जाते है
1.ऋग्वेद और यजुर्वेद में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का कई स्थानों पर उल्लेख जैन धर्म के वैदिक काल से पूर्व अस्तित्व को सिद्ध करता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद तथा बाद के हिन्दू
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