Book Title: Jain Dharm Darshan Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 61
________________ ANA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAA चक्षुइन्द्रिय श्रोतेन्द्रिय श्वासोच्छ्वास आयुष्य श्वासोच्छ्वास भाषा 5 10 पंचेन्द्रिय (संज्ञी) स्पर्शेन्द्रिय रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय चक्षुइन्द्रिय श्रोतेन्द्रिय पांच इन्द्रिय वचन बलप्राण काय बलप्राण मन बलप्राण श्वासोच्छ्वास आहार शरीर इन्द्रिय श्वासोच्छवास भाषा मन जीव के 563 भेद चार गति के संसारी जीव के 563 भेद नरक - 14 भेद तिर्यंच - 48 भेद मनुष्य - 303 भेद देव - 198 भेद कुल - 563 भेद नरक: जिस स्थान पर जीव के अशुभ कर्मों का बुरा फल प्राप्त होता है, उसे नरक कहते हैं। उस स्थान पर उत्पन्न होकर कष्ट पानेवाले जीव नारकी कहलाते हैं। ___ नरक के जीवों का निवास अधोलोक में हैं। जहाँ सात नरक भूमियाँ क्रमशः एक के नीचे दुसरी अवस्थित है। जहाँ नरक जीवों के चारक (बंदीगृह की तरह) उत्पत्ति स्थान है, नरकागार है। ये नरकागार जन्म कारागार वाले कैदियों की अंधेरी कोठरियों से या काले पानी की सजा से किसी तरह भी कम नहीं है, बल्कि उनसे भी कई गुने भयंकर, दुर्गन्धमय, अन्धकारमय और सड़ान वाले हैं। मनुष्य लोक में जो कोई चोरी या हत्या जैसा भयंकर अपराध करता है तो पुलिस वाले उसे पकड़कर थाने में ले जाते हैं, उससे अपना अपराध स्वीकार करवाने के लिए निर्दयता से मारते, पीटते और सताते हैं। वैसे ही नरक में कुछ असुरकुमार जाति के देव है जो इन नारकों को अपने पूर्वकृत अपराधों की याद दिला दिलाकर भयंकर से भयंकर यातना देते हैं। वे बड़ी बेरहमी से उन्हें विविध शस्त्रों से मारते, पीटते हैं, उनके अंगोपांगों को काट डालते हैं, शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर देते हैं, उन्हें पैरों से कुचलते हैं, उन्हें नोचते हैं, शरीर की बोटी - बोटी करते हैं। नारकी के भेद 14 नरक के नाम गोत्रीय नाम | इन 7 के पर्याप्ता और 7 के अपर्याप्ता 1.धम्मा 2. वंसा 3. सीला 4. अंजना 5. रिहा 6. मघा 7. माघवती रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पंकप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा महातमःप्रभा कुल 14 भेद 200000 TATAAS.55 * Formersonel are use only Aahelorenyeorg


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