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अकर्म के कारण नहीं है।
कर्म फल के विषय में प्रभु महावीर ने उत्तराध्ययन सूत्र के सातवें अध्ययन में बताया है कम्मसच्चा हु पाणिणो अर्थात् प्राणी जैसा कर्म करता है वैसा ही फल पाता है।
कर्म की व्याख्या :
कर्म का शाब्दिक अर्थ कार्य, प्रवृति या क्रिया है । इस दृष्टि से खाना-पीना, चलना-फिरना, सोनाजागना, सोचना - बोलना, जीना मरना इत्यादि समस्त शारीरिक, मानसिक, वाचिक, क्रियाओं को कर्म कहा जाता है।
द्रव्य कर्म और भाव कर्म
1. द्रव्य कर्म :- पुद्गल, द्रव्य के समूह को द्रव्य कर्म कहते है।
2. भाव कर्म :- इन समूहों को प्रभावित करने वाली शक्ति अथवा फल देने की शक्ति भाव कर्म है।
जीव के मन में जो विचार धारा चलती है, संकल्प विकल्प होते हैं। कषाय के भाव उत्पन्न होते हैं, किसी
को लाभ हानि पहुँचाने का मानसिक आयोजन चलता है, कलाकांक्षा होती है, ये सब मानसिक विकार भाव -कर्म में परिगणित है। उन मानसिक विकारों के आधार पर जीव के जो पार्श्ववती पुद्गल परमाणु आत्मा के साथ जुड़ते है और आत्मप्रदेशों से संबंध स्थापित करते हैं उन्हें द्रव्य कर्म के अन्तर्गत माना जाता है।
आत्मा और कर्म का संबंध :
कोई पूछे कि कर्म का आत्मा के साथ संबंध कब हुआ ? इसके उत्तर में यही कहा जाएगा। कि दूध में घी का तत्त्व कब मिला। सोने में मिट्टी कब मिली और तिल में तेल, ईख में मधुर रस का मिलन कब हुआ ?
उक्त वस्तुओं का संबंध अनादि है, जैसे वृक्ष से और बीज से वृक्ष की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है, उसी प्रकार से आत्मा और कर्म का मिलन तथा द्रव्यकर्म से भावकर्म तथा भावकर्म से द्रव्यकर्म का सिलसिला भी अनादि काल से चला आ रहा है। ये दोनों एक दूसरे के साथ अनादि काल से घुले मिले हैं। दोनों परस्पर एक दूसरे के निमित्त भी है।
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कर्म वर्गणा
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आत्मा और कर्म का संबंध अनादि होते हुए भी अनंत नहीं है। जैसे बीज और वृक्ष की परंपरा बीज जला देने पर समाप्त हो जाती है, वैसे ही कर्म का आत्मा के साथ संबंध भी समाप्त हो सकता है। जिस दिन आत्मा अपने निज स्वरुप को जान लेगी उस दिन कर्म-शक्ति आत्म शक्ति के सामने पराजित हो जाएगी। कर्म का अस्तित्व स्वीकार करते ही अन्य को दोषी ठहराने की प्रवृति समाप्त हो जाती है।
भगवान से पूछा गया कि आत्मा स्वभाव से कर्म लेप है, निर्मल है तो फिर कर्मों का संचय क्यों होता है और कैसे
होता है ?
आत्मा
समाधान में भगवान फरमाते है " पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्म" (उत्तरा 32/72) आत्मा राग और द्वेष से ग्रस्त हो जाने पर पुद्गलों को आकर्षित करता है। वे पुद्गल कार्मण वर्गणा के रूप में उसके साथ लग जाते है, उदाहरण रूप में एक जगह दो बालक खेल रहे हैं। वे मिट्टी का गोला बनाकर दिवार पर फेंकते हैं। एक का
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