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2-स्थितिबंध
2. स्थिति बंध - जिस समय कर्म का बंध होता है, उसी समय यह भी निश्चित हो जाता है कि यह कर्म कितने समय (काल) तक आत्मप्रदेशों के साथ रहेगा। इतने समय पश्चात् उदय में आयेगा और फिर झड़ जाएगा। जैसे लड्ड आदि मिठाई बनाते समय यह भी निश्चित हो जाता है कि यह मिठाई कितने समय तक ठीक अवस्था में रहेगी। विकृत नहीं होगी। जैसे दूध या छैने की मिठाई 24 घंटा बाद ही विकृत हो जाती है। कोई मिठाई 15 दिन तो कोई एक महीने तक भी विकृत नहीं होती। कोई दवा छः महीने बाद, कोई 12 महीने बाद अपने गुण छोड़ देती है अर्थात् एक्सपायर हो जाती है। इसी प्रकार कर्म की स्थिति निश्चित हो जाना स्थिति बंध है।
3. रसबंध या अनुभागबंध - कर्मों को फल देने की स्थिति अनुभाग या रसबंध है। कर्म आत्मा के साथ जब बंधते है तब उनके फल देने की शक्ति मंद या तीव्र तथा शुभाशुभ रस या विषायक से युक्त होती है। इस प्रकार की शक्ति या विशेषता रसबंध या अनुभागबंध कहलाती है। शुभ प्रकृति का रस मधुर और अशुभ प्रकृत्ति का रस कटु होता है। उदाहरण के लिए जिस प्रकार किसी लड्डू में मधुर रस होता है और किसी में कटु रस होता है या कोई लड्डू कम मीठा
और कोई अधिक मीठा होता है। उसी प्रकार किसी कर्म का विपाक फल तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम होता है तो किसी का मंद,
मंदतर और मंदतम होता है। 4. प्रदेशबंध - कर्म परमाणु का समूह प्रदेशबंध है। प्रदेशों की न्यूनाधिक संख्या के आधार पर प्रदेशबंध होता है। जैसे कोई लड्डू छोटा है, बड़ा है वैसे ही किसी कर्म में प्रदेश अधिक होते हैं, किसी में कम होते हैं। सबसे कम प्रदेश आयुष्य कर्म का होता हैऔर सबसे अधिक प्रदेश वेदनीय कर्म का माना गया
फीकलिइड
है।
। बड़े लडी आत्मा के आठ अक्षय गुणों को रोकने वाले आठ प्रकार के कर्म है। कर्म का नाम प्रकार कौनसे गुण को रोके
दृष्टांत ज्ञानावरणीय 5 आत्मा के ज्ञान गुण को रोके
आंखों पर पट्टी जैसा। दर्शनावरणीय 9 आत्मा के दर्शन गुण को रोके राजा के द्वारपाल जैसा। वेदनीय 2 आत्मा के अव्याबाध सुख को रोके शहद से भरी छुरी जैसा। मोहनीय 28 सम्यग्दर्शन और चरित्र गुण को रोके मदिरा जैसा। आयुष्य 4 | आत्मा की अक्षय स्थिति को रोके। बेड़ी (बंधन) जैसा नाम ___103 आत्मा के अरुपी गुण को रोके चित्रकार जैसा
2 आत्मा के अगुरु लघु गुण को रोके । कुम्हार के घड़े जैसा। अंतराय
आत्मा के अनंत वीर्य गुण को रोके । राजा के खजांची जैसा। सिद्ध में ये आठ कर्मों के क्षय से आठ प्रकार के अक्षय गुण पूर्ण रूप से प्रकट होते हैं।
गोत्र
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