Book Title: Jain Dharm Darshan Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 96
________________ नवकार महामंत्र नमो अरिहंताणं। नमो सिद्धाणं| नमो आयरियाणं। नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सव्व साहूणं। एसो पंच णमुक्कारो, सव्व पाव प्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं।।1।। सूत्र परिचय इस सूत्र में अरिहंत और सिद्ध इन दो प्रकार के देव को तथा आचार्य, उपाध्याय और साधु इन तीन प्रकार के गुरु को नमस्कार किया गया है। ये पांच परमेष्ठी परमपूज्य है। शास्त्रों में इस सूत्र का पंच मंगल एवं पंच मंगल महाश्रुतस्कंध नाम से भी परिचय कराया है। शब्दार्थ णमो- नमस्कार हो। अरिहंताणं - अरिहंत भगवंतों को। सिद्धाणं - सिद्ध भगवंतों को। आयरियाणं - आचार्यों को। उवज्झायाणं - उपाध्यायों को। लोए - लोक में (ढाई द्वीप में) सव्व - साहूणं - सर्व साधूओं को। एसो- यह पंच णमुक्कारो - पांच नमस्कार (पाँचों को किया हुआ नमस्कार) सव्व पाव प्पणासणो - सर्व पापों का नाश करने वाला। च - और। सव्वेसिं - सब। मंगलाणं - मंगलों में। पढम- पहला, मुख्य। हवइ-है। मंगलं - मंगल भावार्थ : अरिहंत भगवंतों को नमस्कार हो। सिद्ध भगवंतों को नमस्कार हो। आचार्यों को नमस्कार हो। उपाध्यायों को नमस्कार हो। ढाई द्वीप में वर्तमान सर्व साधुओं को नमस्कार हो। यह पांच (परमेष्ठियों को किया हुआ) नमस्कार सर्व पापों (अशुभ कर्मों) को नाश करने वाला तथा सब प्रकार के लौकिक लोकोत्तर मंगलों में प्रथम (प्रधान - मुख्य) मंगल है। इन पांच परमेष्ठियों के एक सौ आठ (108) गुण है, इसके लिए कहा है - बारस गुण अरिहंता, सिद्धा अढेव सूरि छत्तीसं। उवज्झाया पणवीसं, साहू सगवीस अट्ठसयं।। अरिहंत के बारह, सिद्ध के आठ, आचार्य के छत्तीस, उपाध्याय के पच्चीस और साधु के सत्ताईस गुण है। सब मिल कर पंचपरमेष्ठियों के 108 गुण है। वे इस प्रकार है गुणस्थानमा . . . .... polapdatestigaai n o ... . .... PARAMARPAAKKAA ............... R AARA

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