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स्मृति का लोप हो जाना (8) बुद्धि भ्रष्ट होना (9) सज्जनों से संपर्क समाप्त हो जाना (10) वाणी में कठोरता आना (11) नीचे कुलोत्पन्न व्यक्तियों से संपर्क (12) कुलहीनता (13) शक्ति हास (14) धर्म (15) अर्थ (16) काम तीनों का नाश होना ।
जिन घरों में मदिरा ने प्रवेश कर दिया वे घर कभी भी आबाद नहीं हो सकते, वे तो बर्बाद ही होंगे। मदिरा मानवता की जड़ों को जर्जरित कर देती है । मदिरा पीने वाले के पास बिना निमंत्रण के भी हजारों दुर्गुण स्वतः ही चले जाते है।
कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है- आग की नन्हीं सी चिनगारी विराटकाय घास के ढेर को नष्ट कर देती है वैसे ही मदिरापान से विवेक, संयम, ज्ञान, सत्य, क्षमा आदि सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं।
4. वेश्यागमन
मदिरापान की तरह वेश्यागमन को भी विश्व के चिंतकों ने सर्वथा अनुचित माना है क्योंकि वेश्यागमन
ऐसा व्यसन है जो जीवन को कुपथ की ओर अग्रसर करता है। वह उस जहरीले सांप की तरह है जो चमकीला, लुभावना और आकर्षक है किंतु बहुत ही खतरनाक है। वैसे ही वेश्या अपने श्रृंगार से, हावभाव और कटाक्ष से जनता को आकर्षित करती है। जिस प्रकार मछली को पकड़ने वाले कांटे से जरा-सा मधुर आटा लगा रहता जिससे मछलियाँ उसमें फंस जाती हैं। चिडियों को फंसाने के लिए बहेलिया जाल के
आसपास अनाज के दाने बिखेर देता है, दानों के लोभ से पक्षीगण आते हैं और जाल में फंस जाते हैं, वैसे ही वेश्या मोहजाल में फंसाने के लिए अपने अंगोपांग का प्रदर्शन करती है, कपट अभिनय करती है जिससे वेश्यागामी समझता है कि यह मेरे पर न्यौछावर हो रही है, और वह अपना यौवन, बल, स्वास्थ्य धन सभी उस नकली सौंदर्य की अग्नि ज्वाला में होम कर देता है।
प्राचीन भारतीय साहित्य में नारी की गौरव गरिमा का चित्रण करते हुए कहा गया है - वह समुद के समान गंभीर है, पानी के समान मिलनसार है, गाय के समान वात्सल्य की मूर्ति है, वह महान् उदार, स्नेह सद्भावना और सेवा की साक्षात प्रतिमा है। वह सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा- तीनों के सद्गुणों समलंकृत है। लज्जा नारी का आभूषण है। शील सौंदर्य है। पर वेश्या में नारी होने पर भी इन सभी सद्गुणों का अभाव है। वेश्या इस सौंदर्य और आभूषण से रहित होने के कारण कुरूप है। वेश्याओं से स्नेह की इच्छा करना बालू से तेल निकालने के समान है।
सुन्दर गणिका का नृत्य देखते हुए विषय तुष्णा के वशीभूत कुछ
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आज के युग में उन्हें वेश्या न कहकर 'कालगर्ल' (Callgirl) कहा जाता है। अच्छे-अच्छे वस्त्र पहनकर अच्छे घरों में रहकर ये धंधा करती है। अतः उनसे बचना चाहिये, वरना हम दुर्गति के भव भ्रमण को बढाने के साथ ही अनेक घातक बीमारियों के शिकार बन सकते हैं। एड्स के खतरे की तलवार सिर पर लटकी रहती है।
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