Book Title: Jain Dharm Darshan Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 17
________________ पुराणों में न केवल सामान्य रूप से श्रमण परंपरा और विशेष रूप से जैन परंपरा से जुड़े अर्हत, व्रात्य, वातरशना, मुनि, श्रमण, आदि शब्दों का उल्लेख मिलता है बल्कि अर्हत परंपरा के उपास्य वृषभ का वंदनीय वर्णन अनेकानेक बार हआ है। ऋषभदेव द्वारा प्रारंभ जैन श्रमण संस्कति तो आज के संदर अधिक प्राचीन है। __2. श्रमण - ऋग्वेद में वातरशन मुनि का प्रयोग मिलता है। ये श्रमण भगवान ऋषभ के ही शिष्य हैं। श्रीमद् भागवत में ऋषभ को श्रमणों के धर्म का प्रवर्तक बताया गया है। उनके लिए श्रमण, ऋषि, ब्रह्मचारी आदि विशेषण प्रयुक्त किये गए हैं। वातरशन शब्द भी श्रमणों का सूचक हैं। श्रमण का उल्लेख वृहदारण्यक उपनिषद और रामायण आदि में भी होता रहा है। ____3. उड़ीसा की प्रसिद्ध खडगिरी और उदयगिरी की हाथी गुफाओं में 2100 वर्ष पुराने प्राचीन शिलालेख पाये गये हैं जिसमें जिक्र आता है किसी तरह कलिंग युद्ध में विजय पाकर मगध के राजा नंद ईसा पूर्व 423 वर्ष में ऋषभ देव की मूर्ति खारवेल से जीत के उपहार के रूप में ले आये। खारवेल के अवशेषो से यह भी मालूम हुआ है कि उदयगिरी में प्राचीन अरिहंत मंदिर हुआ करता था। इस प्रकार उपलब्ध ऐतिहासिक, पुरातात्विक और साहित्यिक सामग्री से स्पष्ट हो जाता है कि जैन धर्म एक स्वतंत्र और मौलिक दर्शन परम्परा के रूप में विकसित हुआ है जिसने भारतीय संस्कृति में करुणा और समन्वय की भावना को अनुप्राणित किया है। rrrrrrrrin YOYOYOYOYKI 11 For Personal & vate use only in Education intemanonal www.jainelibrary.org

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