Book Title: Jain Dharm Darshan Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 58
________________ इन्द्रिय होती है। अपनी सारी जैविक क्रियाएं वे इसी एक इन्द्रिय के द्वारा संपन्न करते हैं। स्थावर जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा - 1. पृथ्वीकाय, 2. अप्काय, 3. तेउकाय, 4. वायुकाय और 5. वनस्पतिकाय जीव। इन समस्त स्थावर जीवों में काय शब्द जुड़ा हुआ है, जिसका अर्थ है शरीर अथवा समूह। त्रस जीव : जो जीव गतिमान है। अपने हित की प्राप्ति और अहित निवृत्ति के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान की गमन क्रिया करते है। इन जीवों के चार भेद है : बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय। जीव के चौदह भेद जीव भेद एकेन्द्रिय सूक्ष्म और बादर बेइन्द्रिय बादर तेइन्द्रिय बादर चउरिन्द्रिय बादर पंचेन्द्रिय संज्ञी और असंज्ञी 7 पर्याप्ता, 7 अपर्याप्ता = 14 भेद कुल सूक्ष्म :- जो आंख से दिखाई न दे (काटने से कटे नहीं, अग्नि से जले नहीं, पानी में डूबे नहीं) ऐसे एक या अनेक जीवों के शरीर समूह को सूक्ष्म कहते हैं। बादर :- बाह्यचक्षु से जो दिखाई दे सके और जिनका छेदनभेदन हो सके, ऐसे एक या अनेक जीवों के शरीर समूह को बादर कहते हैं। पर्याप्ता :- जो जीव अपने योग्य पर्याप्ति को पूर्ण करके मरता है। अपर्याप्ता :- जो जीव अपने योग्य पर्याप्तियां पूर्ण किये बिना मरता है। संज्ञी :- जिसमें मन होता है। असंज्ञी :- जिसमें मन नहीं होता है। DAREKPAARI P P PROPRMEREDEEMPPRPPRO....................... ALDARNEGIDAlib. ..AAAAAAAAAAAAA.....

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