Book Title: Jain Dharm Darshan Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ विशतिस्थानक तेवीसवां भव - पश्चिम महाविदेह के अंदर मूक नाम की नगरी में धनंजय राजा राज्य करता था, उसकी धारिणी नाम की रानी के गर्भ में मरिची का जीव तेवीसवें भव में उत्पन्न हुआ, उस समय माता ने चौदह स्वप्न देखे, समय पर पुत्र उत्पन्न हुआ, प्रिय मित्र नाम रखा, यवा अवस्था को पहंचा चक्रवर्ती पद प्राप्त किया। 84 लाख पर्यों का आयुष्य पालन कर अन्त अवस्था में दीक्षा ली, एक करोड़ वर्ष तक चारित्र पालन कर समाधि मरण हुआ। चौबीसवें भव में सातवें देवलोक में सत्तरह सागरोपम की आयुष्य वाला देव हुआ। पच्चीसवें भव में - इसी जंबूद्वीप के भरत क्षेत्रातगत छत्राग्रा पुरी में नंदन नाम का राजा हुआ, चौवीस लाख वर्ष तक गृहवास में रहकर पोट्टिलाचार्य महाराज के पास दीक्षा अंगीकार की। एक लाख वर्ष तक 11,80,635 मास क्षमण-मास क्षमण का पारणा कर तपश्चर्या की, वहां पर बीस स्थानक पदों की आराधना कर तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया। छबीसवें भव में - पूर्व भव में निर्मल चारित्र पाल कर दशम(प्राणत) देवलोक के पुष्पोत्तर प्रवर पुण्डरीक विमान में बीस सागरोपम की आयुष्य वाला देव हुआ। सतावीसवां भवच्यवन कल्याणक गर्भावतार- देवलोक से मनुष्य लोक में अवतरण केवल मनुष्य शरीर से ही जन्म लेने वाले तीर्थंकर अंतिम भव से पूर्व जन्म में तिर्यंच और मनुष्य के अतिरिक्त देव अथवा नरक गति में से किसी भी एक गति में होते है। श्रमण भगवन्त महावीर देव तीन ज्ञान (मति, श्रुत, अवधि) सहित प्राणत देवलोक से च्यवकर आषाढ़ शुक्ला छठ के दिन ब्राह्मण कल में कोडाल गोत्रीय श्री ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नि देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में पधारे। देवानन्दा द्वारा स्वप्नकथन तथा शक्रेन्द्र का हरिणैगमेषी को आदेश व गर्भ-परावर्तन तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव जैसी लोकोत्तर आत्मा के लिये सामान्य नियम ऐसा है कि वह अन्तिम भव में उच्च, उग्र, भोग, क्षत्रिय इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौरव्य,हरिवंश आदि विशाल कुलों में उत्पन्न होते हैं। 83 दिन के बाद सौधर्म देवलोक के इन्द्र ने हरिनैगमेषी को बुलाया तथा गर्भपरावर्तन का आदेश देते हुए कहा कि तुम शीघ्र ब्राह्मणकुण्ड नगर में जा और देवानन्दा की कोख से भगवान के गर्भ को लेकर उत्तर AAAAAANAINANKAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAPandialeraoeEAAAAAAAAAAAAAA 2124 A AAAAAAAAP

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118